नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप सूर्यदेव व्रत कथा / Suryadev Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। सूर्य देव जी की पूजा को बहुत ही अच्छा माना जाता है जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से सूर्य देव जी की पूजा करता है उसके तेज में निश्चित ही वृद्धि होती है उसे अपने जीवन में कभी भी किसी भी बीमारी का सामना नहीं करना पड़ता। यदि आप सूर्य देव जी की कथा ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं जैसा कि आप जानते हैं हिंदू धर्म में सूर्य देव जी को एक विशेष मान्यता प्राप्त है।
यदि आप अपने परिवार को बीमारियों से मुक्त करना चाहते हैं तो सूर्य देव जी की कथा का निरंतर जाप अवश्य करें इसे रविवार व्रत कथा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि सूर्य देव जी की पूजा रविवार के दिन मुख्य रूप से की जाती है। यहां से आप आसानी से कथा को पढ़ सकते हैं और अगर आप चाहें तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके रविवार की व्रत कथा पीडीएफ भी डाउनलोड कर सकते हैं।
सूर्यदेव व्रत कथा | Suryadev Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश
PDF Name | सूर्यदेव व्रत कथा | Suryadev Vrat Katha PDF in Hindi |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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रविवार व्रत कथा | Ravivar Vrat Katha
एक बूढ़ी माँ थी। उसका बड़ा सीधा-सा नियम था कि वह प्रत्येक रविवार को सुबह स्नान आदि करती, घर को पड़ोसी की गाय के गोबर से लीपती, फिर भोजन बनाती और स्वयं भगवान को भोग लगाती। ऐसा व्रत करने से उसका घर धन-धान्य और सुख-समृद्धि से भर जाता था। कुछ दिन ऐसे ही बीतने के बाद उसकी पड़ोसन सोचने लगी कि यह बुढ़िया हमेशा मेरी गाय का गोबर ले जाती है। इसलिए वह अपनी गाय को घर के अंदर बांधने लगी। गाय का गोबर नहीं मिलने के कारण रविवार को वृद्धा अपने घर की सफाई नहीं कर पाई। इसलिए उसने न तो भोजन बनाया और न ही भगवान को भोग लगाया और स्वयं भी भोजन नहीं किया। इस प्रकार उन्होंने बिना भोजन के उपवास किया।
रात हो गई थी और वह भूखी सो गई। रात्रि में उसे स्वप्न में भगवान ने दर्शन दिए और भोजन न बनाने तथा भोग न लगाने का कारण पूछा। बूढ़ी माई ने कहा, आज मुझे घर पर लीपने के लिए गाय का गोबर नहीं मिला, जिससे हमारा घर साफ नहीं था, जिससे मैं खाना नहीं बना सकी और न ही तुम्हें भोग लगा सकी। तब भगवान ने कहा- ‘माता! हम आपको ऐसी गाय देते हैं जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को अपने घर को गाय के गोबर से लीपकर भोजन बनाती हो और मुझे भोग लगाकर स्वयं भोजन करती हो। इससे प्रसन्न होकर मैं तुम्हें यह वरदान देता हूं और अंत में तुम्हें मोक्ष देता हूं।’ स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए और जब बुढ़िया ने आंखें खोलीं तो देखा कि आंगन में एक अत्यंत सुंदर गाय और बछड़ा बंधा हुआ है। गाय और बछड़े को देखकर वह बहुत खुश हुई और उन्हें घर के बाहर बांध दिया। वहां खाने का चारा डाला गया।
जब उसकी पड़ोसन ने देखा कि उसके घर के बाहर गाय और गाय का बछड़ा खड़ा हुआ है तो उसकी पड़ोसन का ह्रदय नफरत की वजह से जल उठा और अंत में जब उसने देखा कि गाय के गोबर में सोना है तो उसने गाय का गोबर ले लिया और उसकी गाय का गोबर बनाया। इसे उसके स्थान पर रख दिया। वह रोज ऐसा ही करती रही और भोली बुढ़िया को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। तब सर्वव्यापी भगवान ने सोचा कि चतुर पड़ोसी के कार्यों से बुढ़िया धोखा खा रही है। संध्या के समय भगवान ने अपनी माया के कारण बहुत तेज आंधी उत्पन्न की। अंधेरे के डर से बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध दिया। प्रात:काल उठकर जब बुढ़िया ने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गाय को घर के भीतर बांधने लगी।
उधर पड़ोसन ने देखा कि बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी है और उसकी सोने का गोबर उठाने की शर्त न चली तो उसे जलन हुई और कोई उपाय न देखकर वह सभा में गई। उस देश के राजा ने कहा- ‘महाराज! मेरे पड़ोस की एक बुढ़िया के पास एक ऐसी गाय है जो आप जैसे राजाओं के योग्य है। वह प्रतिदिन सोने का गोबर देती है। आप उस सोने से लोगों का ख्याल रखते हैं। वह बुढ़िया इतने सोने का क्या करेगी?’ यह सुनकर राजा ने अपने दूतों को बुढ़िया के घर से एक गाय लाने का आदेश दिया। बुढ़िया सुबह भगवान को चढ़ाया हुआ भोग लेने जा रही थी कि राजा के सेवक गाय को खोलकर ले गए। बुढ़िया बहुत रोई लेकिन कर्मचारियों के सामने कोई क्या कहेगा? उस दिन गाय के अलग हो जाने के कारण बुढ़िया भोजन नहीं कर सकी और गाय को वापस पाने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हुई रात भर रोती रही।
उधर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। लेकिन जैसे ही वह सुबह उठा तो पूरा महल गाय के गोबर से भरा हुआ दिखाई देने लगा। यह देखकर राजा डर गया। भगवान ने रात को स्वप्न में राजा से कहा- ‘महाराज! गाय को बुढ़िया को लौटा देना आपके लिए अच्छा है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे एक गाय दी।’ सबेरा होते ही राजा ने बुढ़िया को बुलाकर गाय और बछड़े को बहुत सा धन समेत आदर सहित लौटा दिया। उसके पड़ोसी को बुलाकर उचित दण्ड दिया गया। ऐसा करने के बाद राजा के महल से गंदगी हटा दी गई।
उसी दिन से राजा ने नगरवासियों को राज्य और स्वयं की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत करने का आदेश दिया। व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। उस नगर पर कोई रोग या प्रकृति का प्रकोप नहीं था। सभी प्रजा सुखपूर्वक रहने लगीं।