नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप शीतला षष्ठी व्रत कथा / Shitla Sashthi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत षष्ठी के व्रत को बहुत ही पवित्र माना जाता है इस व्रत को षष्ठी तिथि के दिन रखा जाता है इस व्रत को रखने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है यदि हम पौराणिक कथाओं की बात करते हैं तो यह व्रत शरीर के कष्ट दूर कर देता है साथ ही जो भी इस व्रत को सच्चे दिल से रखता है उसे संतान की प्राप्ति होती है।
जो भी करने कन्याएं पुत्र प्राप्ति करना चाहती है उनको यह व्रत अवश्य ही रखना चाहिए इस व्रत के महत्व को शब्दों में बयां करें तो यह बहुत कठिन होगा जो भी व्यक्ति पूर्ण विधि-विधान से व्रत को रखता है उसका मन शीतल हो जाता है आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी को शीतला षष्ठी व्रत की कहानी प्रदान करने जा रहे हैं यहां से आप व्रत कथा को पढ़ सकते हैं साथ ही नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके इसकी पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।
शीतला षष्ठी व्रत कथा | Shitla Sashthi Vrat Katha PDF – सारांश
PDF Name | शीतला षष्ठी व्रत कथा | Shitla Sashthi Vrat Katha PDF |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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शीतला षष्ठी की व्रत कथा | Shitla Sashthi Ki Vrat Katha
बहुत पुराने समय की बात है। एक नगर में एक ब्राह्मण दम्पत्ति के सात पुत्र हुआ करते थे। ब्राह्मण ने अपने सात पुत्रों की शादी धूमधाम से करवाई। कुछ समय बीत जाने के बाद भी पुत्रों के कोई सन्तान उत्पन्न न हो सकी। एक दिन किसी ने एक ब्राह्मण दंपत्ति को शीतला षष्ठी व्रत करने की सलाह दी। माता-पिता की आज्ञा से पुत्र-पुत्रियों ने यह व्रत किया। शीतला षष्ठी व्रत के प्रभाव से सभी को एक वर्ष के बाद संतान की प्राप्ति होती है।
इसके बाद वह हर साल इस व्रत को करने का संकल्प लेते हैं। एक बार षष्ठी तिथि के व्रत में ब्राह्मणवादी व्रत के एक नियम की उपेक्षा की जाती है। ब्राह्मण उस दिन गर्म जल से स्नान करते हैं। व्रत की उसी रात को एक ब्राह्मण स्वप्न में देखता है कि उसके परिवार को बहुत कष्ट हो रहा है। परिवार में उत्पन्न संतान मृत्यु को प्राप्त होती है।
इस सपने के टूटने से अचानक उसकी नींद खुल जाती है। ब्राह्मण ने देखा कि उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके हैं, परिवार का ऐसा अंत देखकर ब्राह्मण महिला विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर आसपास के लोग वहां आ जाते हैं। पड़ोसी उस महिला से कहते हैं कि यह माता शीतला का प्रकोप होगा। आपको अपने पापों के लिए माता शीतला से क्षमा याचना करनी चाहिए। यह सब बातें सुनकर उस ब्राह्मण को अपनी गलती याद आ गई। वह ब्राह्मण रोता हुआ वन की ओर चला जाता है। उस अंधेरे जंगल में, वह आग से झुलसी एक बूढ़ी औरत को देखता है।
ब्राह्मण उसके पास जाता है और उसकी हालत का कारण पूछता है। बुढ़िया उससे कहती है कि यह तुम्हारी वजह से हुआ है। व्रत के दिन आपने गर्म जल से स्नान किया और गर्म भोजन किया। इस वजह से मुझे इस दर्द का सामना करना पड़ रहा है।’ यह सुनकर ब्राह्मण अपने किए पर पश्चाताप करता है और क्षमा मांगता है। अपने परिवार को जीवन देने के लिए प्रार्थना करती है। तभी बुढ़िया उसे बुलाती है। इस आग की जलन को शांत करने के लिए इस पर दही का लेप करें जिससे इसे शांति मिले।
फिर ब्राह्मण उस बुढ़िया के शरीर पर दही का लेप लगाता है। बुढ़िया अपने रूप में आ जाती है और शीतला माता का रूप धारण कर लेती है। माता शीतला ने ब्राह्मण को क्षमा कर दिया। उसका परिवार भी जीवित हो जाता है। जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से कथा का स्मरण करता है माता उसे मनचाही वस्तु प्रदान करती है।
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