पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप पुत्रदा एकादशी व्रत कथा / Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। एकादशी में पुत्रदा एकादशी को बहुत ही खास माना जाता है। इस एकादशी को भारत के कई राज्यों में पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन पूर्ण विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। जो भी महिला संतान की प्राप्ति करना चाहती है उसे इस व्रत को अवश्य ही रखना चाहिए। इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से करने से भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहेगी और निश्चित की संतान की प्राप्ति होगी। आप इस पोस्ट के माध्यम से पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा / Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha को पढ़ सकते हैं। और नीचे डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF
Pages 4
Language Hindi
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Category Religion & Spirituality
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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF

धनुर्धर अर्जुन ने कहा- “हे भगवन्! इन कल्याणकारी एवं महान पुण्यमयी कथाओं को सुनकर मेरे हर्ष की सीमा नहीं रही और मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। हे कमलनयन! अब कृपा करके मुझे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इसमें क्या है?” एकादाशी का क्या नाम है तथा इसे करने की विधि क्या है? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इसके व्रत करने से क्या फल प्राप्त होता है?”

श्रीकृष्ण ने कहा- “हे धनुर्धर! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनने मात्र से अनन्त यज्ञ का फल प्राप्त होता है। हे पार्थ! द्वापर युग के प्रारम्भ में एक नगर था जिसका नाम महिष्मती था। उस नगरी में महाजीत राज नाम का एक राजा रहता था। वह पुत्रहीन था, इसलिए सदैव दुखी रहता था। उसे राज्य-सुख, वैभव, सब कुछ अत्यंत कष्टकारी लगता था, क्योंकि पुत्र के बिना मनुष्य को सुख नहीं मिलता। इस लोक और परलोक दोनों में है।

राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, लेकिन उनके सभी उपाय असफल साबित हुए। जैसे-जैसे राजा महाजित वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे थे, उनकी चिंताएँ भी बढ़ती जा रही थीं।

एक दिन राजा ने अपनी सभा को संबोधित करते हुए कहा – ‘मैंने अपने जीवन में न तो कभी कोई पाप किया है, न ही प्रजा से अन्यायपूर्वक धन वसूल किया है, न ही मैंने कभी प्रजा को कष्ट दिया है, न ही मैंने कभी देवताओं और ब्राह्मणों का अपमान किया है।

मैंने हमेशा अपने बेटे की तरह लोगों का पालन किया है, कभी किसी से ईर्ष्या नहीं की, सभी को बराबर समझा। मेरे राज्य में कानून भी ऐसे नहीं हैं, जो प्रजा में अनावश्यक भय उत्पन्न करें। इस प्रकार शासन करते हुए भी मुझे इस समय बहुत कष्ट हो रहा है, इसका क्या कारण है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। आप इस पर विचार करें कि इसका कारण क्या है और क्या मैं इस जीवन में इस कष्ट से छुटकारा पा सकूंगा?

राजा के इस कष्ट को दूर करने के लिए मंत्री आदि वन गए, ताकि वहां जाकर वे किसी ऋषि को राजा का दुख बताकर उसका समाधान निकाल सकें। वन में जाकर उन्होंने श्रेष्ठ मुनियों के दर्शन किये।

उस वन में वृद्ध और धर्म के ज्ञाता महर्षि लोमश भी रहते थे। वे सभी लोग महर्षि लोमश के पास गये। उन सभी ने महर्षि लोमश को प्रणाम किया और उनके सामने बैठ गये। महर्षि को देखकर सभी बहुत प्रसन्न हुए और सभी ने महर्षि लोमश से प्रार्थना की – ‘हे भगवान! यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमें आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

मंत्री की बात सुनकर लोमश ऋषि बोले- ‘हे मंत्री! मैं आपकी विनम्रता और अच्छे व्यवहार से बहुत प्रसन्न हूं। आप मुझे अपने आने का प्रयोजन बताइये। मैं अपनी क्षमता के अनुसार आपका कार्य अवश्य करूंगा, क्योंकि हमारा शरीर परोपकार के लिये ही बना है।

लोमश ऋषि के ऐसे कोमल वचन सुनकर मंत्री ने कहा- ‘हे ऋषिवर! आप हमारी सारी बातें जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं, अत: आप हमारा संदेह दूर कर दीजिये। महिष्मती नाम की नगरी के हमारे महाराज महाजीत बड़े धर्मात्मा और प्रजावत्सल हैं। वह धर्म के अनुसार प्रजा का पुत्र के समान पालन-पोषण करता है, परंतु फिर भी वह पुत्रहीन है। हे महामुनि! इससे वह बहुत दुखी हो जाता है।

हम उनकी प्रजा हैं उसके दुःख से हम भी दुःखी हैं, क्योंकि राजा के सुख में सुख और उसके दुःख में दुःख मानना प्रजा का कर्तव्य है। हमें अभी तक उनके निःसन्तान होने का कारण ज्ञात नहीं हुआ, इसलिये हम आपके पास आये हैं। अब आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास हो गया है कि हमारा दुःख अवश्य ही दूर हो जायेगा, क्योंकि महापुरुषों के दर्शन से ही प्रत्येक कार्य सिद्ध होता है, अत: आप कृपा करके बताएं कि किस विधि से हमारे महाराज को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है। हे ऋषिवर! यह हम पर और हमारे प्रदेश की जनता पर बहुत बड़ा उपकार होगा।’

ऐसी करुण प्रार्थना सुनकर लोमश ऋषि ने अपनी आँखें बंद कर लीं और राजा के पूर्व जन्म के बारे में सोचने लगे। कुछ क्षण बाद उसने सोचा और कहा – ‘हे सज्जनों! यह राजा पूर्व जन्म में बहुत असभ्य था और बुरे कर्म करता था। उस जन्म में वह एक गाँव से दूसरे गाँव घूमते रहते थे।

एक बार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन की बात है, वह दो दिन से भूखा था। दोपहर को एक जलाशय पर पानी पीने गया। उस समय एक ब्याही गाय उस स्थान पर पानी पी रही थी। राजा ने उसे प्यासा कर दिया और स्वयं पानी पीने लगा।

हे पुरुषश्रेष्ठ! इसलिए राजा को यह कष्ट भोगना पड़ता है।

एकादशी के दिन भूखे रहने का फल यह हुआ कि वह इस जन्म में राजा है और प्यासी गाय को जलाशय से निकाल देने के कारण पुत्रहीन है।

यह जानकर सभी सदस्य प्रार्थना करने लगे- ‘हे ऋषिश्रेष्ठ! शास्त्रों में लिखा है कि पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं, अत: कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे हमारे राजा के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाएं और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो।’

पार्षदों की प्रार्थना सुनकर लोमश मुनि बोले- ‘हे महापुरुषों! यदि आप सभी लोग श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करें और उस व्रत का फल राजा के निमित्त करें तो आपके राजा के यहां एक पुत्र का जन्म होगा। राजा के सारे कष्ट नष्ट हो जायेंगे।

यह उपाय जानकर मंत्री सहित सभी लोगों ने महर्षि को बहुत धन्यवाद दिया और उनका आशीर्वाद लेकर अपने राज्य लौट आये। उसके बाद लोमश ऋषि की आज्ञानुसार उसने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वादशी के दिन उसका फल राजा को दिया।

इस पुण्य के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और नौ महीने के बाद उसने एक अत्यंत तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।

हे पाण्डुपुत्र! इसीलिए इस एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में सुख और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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