निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha PDF

यहाँ इस पोस्ट में, हम आपके लिए निर्जला एकादशी व्रत कथा / Nirjala Ekadashi Vrat Katha PDF प्रदान करने जा रहे हैं। जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत अन्य सभी एकादशी के व्रतों से कठिन और विशेष है। हिंदू धर्म के अंतर्गत यह व्रत बहुत ही अधिक पवित्र माना जाता है। इस व्रत की महत्वता बहुत ही अधिक है। यहां तक की विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी इस व्रत के महत्व का उल्लेख किया गया है ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत रखता है उसे सभी एकादशी का फल प्राप्त होता है।

इस व्रत के दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है इस व्रत को जो भी व्यक्ति पूर्ण आस्था व श्रद्धा के साथ रखता है उसके जीवन में किसी भी वस्तु की कमी नहीं होती और वह मरणोपरांत स्वर्ग में वास करता है। इस लेख के माध्यम से आप निर्जला एकादशी की कथा पढ़ सकते हैं। साथ ही नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में प्राप्त कर सकते हैं।

 

निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha PDF
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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निर्जला एकादशी व्रत की कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Ki Katha

प्राचीन कथा के अनुसार, भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भाई युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, पर महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई, मैं भगवान की शक्ति आदि की पूजा कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ, पर बिना भोजन किये। बिना नहीं रह सकता। इस पर व्यास जी भीम से कहते हैं कि हे भीम सेन यदि आप स्वर्ग को अच्छा और नर्क को बुरा मानते हैं तो आपको प्रत्येक महीने में आने वाली दोनों एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए।

भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख नहीं सह सकता। यदि वर्ष में एक ही व्रत हो तो मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम की अग्नि है, इसलिए मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूर्ण उपवास तो दूर, एक समय भी भोजन के बिना रहना मुश्किल है।

अतः आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसे वर्ष में एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने अनेक शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े से प्रयास से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। और इसीलिए शास्त्रों के अनुसार दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और यह व्रत मुक्ति के लिए किया जाता है।

व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक जाने के नाम से डर गए और काँपते हुए कहने लगे कि अब क्या किया जाए? मैं एक मास में दो व्रत तो नहीं कर सकता, परन्तु वर्ष में एक व्रत अवश्य कर सकता हूं। अतः यदि वर्ष में एक दिन के व्रत से मुझे मुक्ति मिल सकती है, तो कोई ऐसा व्रत बताओ। यह सुनकर व्यासजी ने कहा कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जो वृष और मिथुन राशि की संक्रांति के बीच आती है, निर्जला कहलाती है। तुम उस एकादशी का व्रत करो।

इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल वर्जित है। आचमन में छह महीने से ज्यादा पानी नहीं रखना चाहिए, नहीं तो वह शराब जैसा हो जाता है। इस दिन अन्न नहीं खाना चाहिए, क्योंकि अन्न खाने से व्रत का नाश होता है। यदि कोई एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के दिन सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं करता है तो उसे सभी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान आदि करना चाहिए। इसके बाद किसी भूखे और योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर पुनः भोजन करना चाहिए। इसका फल एक वर्ष की संपूर्ण एकादशी के बराबर होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! भगवान ने खुद मुझे यह बताया है। इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दानों से बढ़कर है। केवल एक दिन निर्जल रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसकी मृत्यु के समय यमदूत आकर उसे घेरते नहीं हैं, अपितु भगवान के पार्षद उसे पुष्प विमान में बिठाकर स्वर्ग ले जाते हैं।

इसलिए निर्जला एकादशी का व्रत करना संसार में सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए इस व्रत को पुरुषार्थ से करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए और गौदान करना चाहिए। इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने यह व्रत किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत को सच्चे दिल से रखने से सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

 

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