मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप मोहिनी एकादशी व्रत कथा / Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है मुख्य रूप से एक महीने में दो बार एकादशी होती है जिनमें से पहली शुक्ल पक्ष एकादशी तथा दूसरी कृष्ण पक्ष एकादशी होती है मोहिनी एकादशी वैशाख माह में शुक्ल पक्ष के दिन पड़ती है मोहिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु के रूप स्त्री रूप मोहिनी को समर्पित है एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।

इस दिन भगवान विष्णु के अवतारों की पूजा की जाती है पर ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से व्रत करता है और भगवान की पूजा करता है उसके जीवन में किसी प्रकार की समस्या नहीं आती। यदि आप भी भगवान की असीम कृपा छाया अपने ऊपर बनाए रखना चाहते हैं तो यह पोस्ट स्पेशल आपके लिए है पोस्ट के माध्यम से आप मोहिनी एकादशी व्रत की कथा को पूरा पढ़ सकते हैं। साथ ही बिना किसी परेशानी के नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके इसकी पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। अगर आप चाहें तो इस पोस्ट को नीचे दिए गए शेयर बटन पर क्लिक करके अपने दोस्तों संबंधियों के साथ शेयर भी कर सकते हैं।

 

मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश

PDF Name मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
Download PDF Click Here

मोहिनी एकादशी की कहानी | Mohini Ekadasi Ki Khani

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और क्या है इसकी कथा? क्या है इस व्रत की विधि, यह सब विस्तार से बताएं।

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ, जो महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचन्द्रजी को सुनाई थी। एक बार श्रीराम ने कहा कि हे गुरुदेव! ऐसा कोई व्रत बताओ, जिससे समस्त पाप और शोक नष्ट हो जायें। सीताजी के वियोग में मुझे बहुत कष्ट हुआ है।

महर्षि वशिष्ठ ने कहा- हे राम! बहुत सुंदर प्रश्न किया है आपने। आपकी बुद्धि बहुत शुद्ध और पवित्र है। यद्यपि आपके नाम के स्मरण से मनुष्य पवित्र और पवित्र हो जाता है, फिर भी यह प्रश्न जनहित में अच्छा है। वैशाख माह में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य सभी पापों और दुखों से छूट जाता है और मोह से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कहानी कहता हूं। ध्यान से सुनो।

सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक नगर में द्युतिमान नाम का एक चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था। वहाँ धनपाल नाम का एक धनी और सदाचारी वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत पवित्र और विष्णु के भक्त थे। उसने शहर में कई रेस्तराँ, पानी के कुंड, कुएँ, सरोवर, धर्मशालाएँ आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के कई पेड़ भी लगे थे। उनके 5 पुत्र थे- सुमना, सदबुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।

इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पूर्वजों आदि को नहीं मानता था। वह वेश्याओं, दुराचारियों की संगति में जुआ खेलता था, पराई स्त्रियों के साथ भोग-विलास में विलीन रहता था इसके साथ ही वह मांस और साथ शराब का भी सेवन किया करता था इसी प्रकार से वह प्रत्येक गलत कार्य में अपने पिता की धन का नाश किया करता था।

इन्हीं कारणों से परेशान होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर आने के बाद वह अपने जेवर और कपड़े बेचकर जीवन यापन करने लगा। जब सब कुछ नष्ट हो गया, तो वेश्या और दुष्ट साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब उसे भूख-प्यास से बड़ा दु:ख होने लगा। कोई सहारा न देखकर उसने चोरी करना सीख लिया।

जब वह एक बार चोरी करते हुए पकड़ा गया तो उसे लोगों ने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वह वैश्य का पुत्र है और उस समय केवल उसे एक चेतावनी दी गई थी लेकिन उसने दोबारा से फिर चोरी की तो इस बार लोगों ने उसे पकड़कर राजा के सामने प्रस्तुत कर दिया राजा ने उसे कारागार में डाल दिया। जेल में उन्हें बहुत दुख दिया गया। बाद में राजा ने उसे शहर छोड़ने के लिए कहा।

वह नगर छोड़कर वन में चला गया। वहां वह जंगली जानवरों और पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय बाद वह बहेलिया बन गया और अपने धनुष-बाण से पशु-पक्षियों को मारने लगा।

एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल वह भोजन की तलाश में भटकता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। उस समय वैशाख का महीना था और ऋषि गंगा में स्नान करके आ रहे थे। उनके गीले कपड़ों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ ज्ञान हुआ।

वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा, हे मुने! मैंने अपने जीवन में कई पाप किए हैं। बिना धन के इन पापों से मुक्ति पाने का कोई सरल उपाय बताओ। उनकी विनम्र बातें सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे। मुनि के वचन सुनकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत का पालन किया।

हे राम! इस व्रत को रखने से उसके सभी पाप संपूर्ण रूप से नष्ट हो गए और अंत में आकर वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक की तरफ प्रस्थान कर गया इस व्रत को रखने से सभी प्रकार के मोह आदि समाप्त हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने या सुनने से सहस्त्र गौओं का फल प्राप्त होता है।


नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके मोहिनी एकादशी व्रत कथा / Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi डाउनलोड कर सकते हैं।

Download PDF


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *