मेष संक्रांति की कथा | Mesh Sankranti Vrat Katha PDF in Hindi

हेलो दोस्तों, अगर आप मेष संक्रांति की कथा / Mesh Sankranti Vrat Katha PDF in Hindi ढूंढ कर रहे हैं तो आप सही पेज पर हैं। हिंदी पंचांग के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो इसे मैं सक्रांति के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह बताया जाता है कि जो सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे मुख्य रूप से सक्रांति का नाम दिया जाता है आमतौर पर मेष सक्रांति वैशाख माह या अप्रैल के महीने में पढ़ती है।

हिंदू धर्म के अंतर्गत मेष सक्रांति कोई विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इस दिन सभी खरमास समाप्त हो जाते हैं और सभी अच्छे कार्य दोबारा से शुरू हो जाते हैं हम आपको यह बताना चाहते हैं कि मेष सक्रांति के दिन की पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है आज हम आप सभी के लिए मेष सक्रांति से संबंधित सभी जानकारी लेकर आए है। आप यहाँ से सभी जानकारी आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं साथ ही बिना किसी परेशानी के उसकी पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

मेष संक्रांति की कथा | Mesh Sankranti Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश

PDF Name मेष संक्रांति की कथा | Mesh Sankranti Vrat Katha PDF in Hindi
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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Satyanarayan Vrat Ktha | Mesh Sankranti Katha

बहुत समय पहले की बात है, एक बार विष्णु भक्त नारद जी ने भ्रमण करते समय मृत्युलोक के प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के दु:खों से पीड़ित देखा। इससे उनका साधु हृदय द्रवित हो गया और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते हुए क्षीरसागर पहुंचे और स्तुति में कहा, ‘हे नाथ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की पीड़ा दूर करने के लिए कोई छोटा-सा उपाय बतलाइए।’ तब भगवान ने कहा, ‘हे वत्स! आपने विश्व कल्याण की भावना से बहुत सुन्दर प्रश्न किया है। इसलिए आपका धन्यवाद। आज मैं आपको एक ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्य देता है और मोह के बंधन को काटता है और वह श्री सत्यनारायण व्रत है। ऐसा विधि-विधान से करने से व्यक्ति सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।

इसके बाद भगवान विष्णु स्वयं वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर उस गरीब ब्राह्मण के पास गए और कहा, ‘हे विप्र! भगवान सत्यनारायण जी मन की इच्छा के अनुसार फल देने वाले हैं और जो भी व्यक्ति भगवान सत्यनारायण की सच्चे दिल से पूजा करता है उसके जीवन के सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में व्रत का भी अपना महत्व होता है, लेकिन व्रत को केवल भोजन न करने के रूप में नहीं समझना चाहिए।

व्रत के समय हृदय में यह विश्वास होना चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे साथ विराजमान हैं। अत: भीतर और बाहर स्वच्छता रखनी चाहिए और श्रद्धा और विश्वास से भगवान का पूजन कर उनकी मंगल कथा का श्रवण करना चाहिए। संध्या के समय किया जाने वाला यह व्रत-पूजन अधिक विस्तृत माना जाता है।

साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान से सुना, पर उसकी श्रद्धा अधूरी थी। विश्वास की कमी थी। वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर वह सत्यव्रत की पूजा करेगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। जब उसकी धर्मपरायण पत्नी ने उसे व्रत की याद दिलाई तो उसने कहा कि वह इसे कन्या के विवाह के समय करेगा।

समय आने पर कन्या का विवाह हो गया पर उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। वह अपने दामाद के साथ व्यापार के सिलसिले में गया था। उन्हें राजा चंद्रकेतु ने चोरी के आरोप में अपने दामाद सहित कैद कर लिया था। पिछले घर में चोरी भी हुई थी। पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती को भीख मांगने को विवश होना पड़ा। एक दिन कलावती ने विप्र के घर श्री सत्यनारायण की पूजा होते देखा और घर आकर अपनी माता को बताया। फिर अगले दिन माता ने व्रत और भक्तिपूर्वक पूजा की और भगवान से अपने पति और दामाद के जल्द लौटने का वरदान मांगा।

श्रीहरि ने प्रसन्न होकर स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को रिहा करने का आदेश दिया। राजा ने उसे धन-धान्य और प्रचुर द्रव्य देकर विदा किया। घर आकर सत्यव्रत ने जीवनपर्यंत पूर्णिमा और संक्रान्ति मनाई, जिसके फलस्वरूप उन्होंने सांसारिक सुखों को भोगकर मोक्ष प्राप्त किया।

इसी प्रकार राजा तुंगध्वज ने वन में गोपगणों को भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा करते हुए देखा, परन्तु आधिपत्य के नाम पर चूर राजा न तो पूजा स्थल पर गए, उनको प्रणाम भी नहीं किया और ना ही द्वारा जो उन्हें प्रसाद दिया गया था उसे उन्होंने ग्रहण भी नहीं किया। परिणाम यह हुआ कि राजा का पुत्र, धन-धान्य, घोड़े-गजादी सब नष्ट हो गये। राजा को अचानक अहसास हुआ कि विपत्ति का कारण भगवान सत्यदेव का अनादर है। उसे बहुत अफ़सोस हुआ। वह तुरंत जंगल में चला गया। गोपगणों को बुलाकर बहुत समय व्यतीत करने के बाद भगवान सत्यनारायण की पूजा की। फिर उनसे प्रसाद लेकर घर आ गया। उसने देखा कि विपत्ति टल गई और उसकी सारी संपत्ति और लोग सुरक्षित हैं। राजा प्रसन्नता से भर गया और सत्यव्रत के आचरण में लग गया और अपना सर्वस्व भगवान को अर्पण कर दिया।

मेष संक्रांति 2023 कब है

इस साल में सक्रांति 14 अप्रैल 2023 को शुक्रवार के दिन है।

मेष संक्रांति शुभ मुहूर्त

सुबह 10 बजकर 55 मिनट से शाम 06 बजकर 46 मिनट तक

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