गुरुवार व्रत कथा | Guruvar Vrat Katha PDF in Hindi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गुरुवार व्रत कथा / Guruvar Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत गुरुवार के दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और यह मुख्य रूप से बृहस्पति देव जी को समर्पित है जो भी व्यक्ति बृहस्पतिवार का व्रत रखता है उस पर भगवान बृहस्पति जी की कृपा छाया बनी रहती है भगवान बृहस्पति के साथ-साथ उस व्यक्ति पर श्री हरि विष्णु नारायण का आशीर्वाद भी बना रहता है यदि आप सच्चे दिल से इस व्रत को रखते हैं तो आपको मनचाही वस्तु अवश्य ही प्राप्त होगी।

आपके परिवार को किसी भी प्रकार के रोग, मानसिक तनाव, इत्यादि किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा आज इस लेख के माध्यम से आप बिना किसी परेशानी के बृहस्पतिवार की कथा पढ़ सकते हैं साथ ही नीचे दिए हुए बटन पर क्लिक करके पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं हम अपनी पूरी हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि आपको बिल्कुल सही जानकारी प्रदान की जाए जिससे आपको किसी भी प्रकार की समस्या का सामना ना करना पड़े।

 

गुरुवार व्रत कथा | Guruvar Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश

PDF Name गुरुवार व्रत कथा | Guruvar Vrat Katha PDF in Hindi
Pages 3
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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गुरुवार की व्रत कथा | Guruvar ki vrat katha PDF in Hindi

प्राचीन काल में एक राज्य में एक राजा था, वह बड़ा ही प्रतापी और दानवीर था। वह प्रत्येक गुरुवार का व्रत रखता था और गरीबों और भूखों को दान देकर दान का काम करता था, लेकिन राजा की रानी को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। रानी ने स्वयं न तो व्रत किया और न ही किसी को एक पैसा दान किया और राजा को भी ऐसा करने से मना किया।

एक बार की बात है जब राजा शिकार खेलने वन में गया तो घर में केवल रानी और उसकी दासी ही थी। तब बृहस्पति देव साधु का वेश धारण कर रानी के द्वार पर आते हैं। और जब वह भिक्षा माँगता है, तब रानी कहने लगती है कि “हे साधु महाराज, अब मैं इस दान, पुण्य भिक्षा से तंग आ गया हूँ। कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरा यह सब धन नष्ट हो जाय और मैं सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकूँ।

यह सुनकर बृहस्पति देव ने कहा, “हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, धन से कोई कैसे दुखी हो सकता है। अधिक धन हो तो शुभ कार्यों में लगाओ, बाग लगवाओ, कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय बनवाओ। लेकिन साधु की इस बात से रानी को कोई खुशी नहीं हुई और कहने लगी “मुझे किसी धन की आवश्यकता नहीं है कि मैं इसे दान कर दूं और इसे संभालने में अपना समय बर्बाद कर दूं”।

रानी के इन वचनों को सुनकर साधु ने कहा, “हे रानी, यदि यह आपके दिल की इच्छा है, तो जैसा मैं कहता हूं वैसा करो। बृहस्पति के दिन सबसे पहले आपको अपने घर को गाय के गोबर से लीपना है और उसके बाद अपने बालों को पीली मिट्टी से धो लेना और ले जाना और बालों को धोते समय स्नान कर लेना।

राजा को दाढ़ी बनाने और भोजन में मांस-मदिरा का सेवन करने तथा धोबी के यहां कपड़े धोने के लिए कहना। बृहस्पति के ये सात वार करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। यह कहकर साधु महाराज अंतर्ध्यान हो गए।

साधु के कहे अनुसार रानी ऐसा करने लगी, अब केवल तीन बृहस्पति वार हुए, रानी का सारा धन नष्ट होने लगा। राजा का परिवार भोजन के लिए तरसने लगा। फिर एक दिन राजा ने कहा, हे रानी, तुम यहीं ठहरो, मैं दूसरे देश को जा रहा हूं।

क्योंकि यहां मुझे सब जानते हैं, इसलिए मैं यहां रहकर कोई छोटा-मोटा काम नहीं करना चाहता। और राजा परदेश चला गया और वहां जाकर जंगल से लकड़ी काटकर नगर में बेचने लगा। इसी प्रकार राजा अपना जीवन व्यतीत करने लगा जहाँ राजा के विदेश जाते ही रानी और दासी उदास रहने लगी।

एक समय ऐसा भी आया जब रानी और दासी को सात दिन तक भोजन नहीं मिला। तब रानी ने दासी से कहा कि मेरी बहन पास के गाँव में रहती है, वह बहुत धनवान है, तुम उसके पास जाओ और माँगने पर कुछ ऐसा ले आओ जिससे हमारा थोड़ा गुजारा हो सके।

वह दासी रानी की बहन के घर जाती है और जिस दिन मैं उसके घर जाती है उस दिन बृहस्पतिवार था जिस समय वह वहां पहुंचती है उस समय रानी की बहन बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी तब दासी ने रानी की बहन को रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया।

जब रानी की बहन ने दासी की बातों को अनसुना कर दिया तो दासी को बहुत गुस्सा आया। और दासी ने रानी के पास जाकर सारी बात कह सुनाई। उधर रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई है और वह बहुत दुखी रही होगी क्योंकि मैंने उससे बात नहीं की। कथा सुनकर और कथा समाप्त कर रानी की बहन रानी के घर गई और बोली- हे बहन, जब तेरी दासी आई थी, तब मैं बृहस्पति वार की कथा सुन रही थी और उस दिन मेरा व्रत था, जब तक कथा चलती है न मैं उठता हूँ और न वे बोलते हैं, इसलिए मैं दासी को उत्तर नहीं दे सका, बताओ क्या बात थी।

तब रानी ने अपने घर का सारा वृत्तांत सुनाया और कहा कि हमारे घर में अन्न नहीं था, हम सात दिन से भूखे हैं। यह सुनकर रानी की बहन ने कहा कि बृहस्पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब दासी ने भीतर जाकर देखा तो उसे अनाज से भरा एक घड़ा मिला। तब रानी ने अपनी बहन से व्रत के बारे में पूछा। भोजन न मिलने पर ही व्रत किया जाता है, यह सोचकर रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत की विधि पूछी। केले की जड़ में भगवान विष्णु की मसूर की दाल और किशमिश से पूजा करें और दीपक जलाकर पीले वस्त्र धारण करें और उस दिन पीला भोजन करें और व्रत कथा सुनें। यह कहकर रानी की बहिन घर चली गई।

अब रानी ने व्रत प्रारंभ किया, पर पीला अन्न कहाँ से लाएँ, उनके पास नहीं था। फिर उनके व्रत से प्रसन्न होकर गुरुदेव एक साधारण व्यक्ति के वेश में आते हैं और उन्हें दो थाली में भोजन करा कर चले जाते हैं। रानी और दासी प्रसन्न होकर भोजन ग्रहण करती हैं।

इसके बाद वे सभी गुरुवार के दिन इस व्रत को करने लगे तो बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन आने लगा। लेकिन धन आने के बाद रानी फिर आलस करने लगी, तब दासी ने उसे समझाया कि तुम्हारे कारण हमारा धन नष्ट हो गया और अब तुम फिर से आलस्य करने लगी हो। भगवान की कृपा से हमारे पास धन फिर से आ गया है। उसे अच्छे काम में लगा दिया, तब रानी ने दान करना शुरू किया, भूखे लोगों को भोजन देना शुरू किया, इस तरह रानी की कीर्ति चारों ओर फैल गई।

 

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