गंगा दशहरा व्रत कथा | Ganga Dussehra Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गंगा दशहरा व्रत कथा / Ganga Dussehra Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के आधार पर जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है संपूर्ण भारत वर्ष में गंगा दशहरा को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और ऐसा माना जाता है कि इसी दिन माता गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था हिंदू धर्म के अंतर्गत गंगा नदी को बहुत ही अधिक पवित्र व मां के समान माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति मां गंगा में स्नान करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं।

हम शास्त्रों की बात करते हैं तो राजा भागीरथ के कहने पर गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थी जो भी व्यक्ति इस दिन सच्चे दिल से मां गंगा की पूजा करता है और गंगा में स्नान कर लेता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है इस लेख के माध्यम से आप गंगा दशहरा की व्रत कथा पढ़ सकते हैं साथ ही नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके बिना किसी परेशानी के पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

 

गंगा दशहरा व्रत कथा | Ganga Dussehra Vrat Katha PDF – व्याख्या

PDF Name गंगा दशहरा व्रत कथा | Ganga Dussehra Vrat Katha PDF
Pages 2
Source pdfinbox.com
Language Hindi
Category Religion & Spirituality
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गंगा दशहरा की कथा | Ganga Dussehra Ki Katha

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा भागीरथ अयोध्या में रहते थे। आपको बता दें कि इन्हें भगवान श्रीराम का पूर्वज माना जाता है। एक बार राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों का तर्पण करने के लिए गंगा जल की आवश्यकता पड़ी। उस समय मां गंगा स्वर्गलोक में ही बहती थी। यही सोचकर राजा भगीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए कई वर्षों तक घोर तपस्या की। लेकिन फिर भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।

यह देखकर राजा भागीरथ हिमालय चले गए और वहां जाकर वे फिर से घोर तपस्या में लीन हो गए। उनकी कठोर तपस्या को देखकर मां गंगा बहुत प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए वहां प्रकट हुईं। मां गंगा को अपने सामने देखकर राजा भगीरथ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मां गंगा को धरती पर आने को कहा।

यह सुनकर मां गंगा ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। लेकिन राजा भगीरथ के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई। गंगा माता का वेग बहुत अधिक था। यदि वह पृथ्वी पर आ जाती तो सारी पृथ्वी नष्ट हो जाती। उनकी इस परेशानी को महादेव यानी भगवान शिव ही दूर कर सकते थे। जब राजा भागीरथ को इस बात का पता चला तो वे भगवान शिव की तपस्या करने लगे।

एक वर्ष तक राजा भगीरथ भगवान शिव की घोर तपस्या करते रहे। कभी पैर के बल खड़े होकर तपस्या करते थे तो कभी बिना खाए। राजा भागीरथ की इस कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा माता की धारा प्रवाहित कर दी। तब भगवान शिव ने मां गंगा को अपने बालों में बांध लिया।

करीब 32 दिनों तक मां गंगा शिवजी के केशों में प्रवाहित होती रहीं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन भगवान शिव ने अपनी एक जटा खोली और गंगा माता को धरती पर जाने को कहा। तब राजा भागीरथ ने मां गंगा के धरती पर आने के लिए हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों के बीच से रास्ता बनाया था। जब मां गंगा पर्वत से मैदान में पहुंचीं, तब राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों को गंगाजल से तर्पण कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया। मां गंगा का जिस दिन धरती पर अवतरण हुआ उस ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का दिन था इसीलिए इस दिन माता गंगा की पूजा का विशेष प्रावधान है।

 

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