गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गणेश चतुर्थी व्रत कथा / Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम चतुर्थी तिथि की बात करते हैं तो यह भगवान गणेश जी को समर्पित है भारत में गणेश चतुर्थी के दिन करोड़ों लोगों के द्वारा भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है और भारत के साथ-साथ अन्य भी कई देशों में भगवान गणेश जी की पूजा को बहुत ही शांति व पवित्र तरीके से किया जाता है। हिंदू धर्म में गणेश जी का एक प्रमुख स्थान है इसीलिए कोई भी कार्य करने से पूर्व गणेश जी को याद किया जाता है ऐसा इसलिए किया जाता है।

उन्हें यह वरदान प्राप्त है कि सभी भगवानों में सर्वप्रथम पूजा उनकी होगी जो भी व्यक्ति गणेश जी की पूजा सच्चे दिल से करता है उसके परिवार पर गणेश जी की कृपा हमेशा बनी रहती है। और उसे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। आज इस लेख के माध्यम से आप बिना किसी परेशानी के मासिक गणेश चतुर्थी की व्रत कथा को पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

 

 

गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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मासिक गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Masik Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुन्दर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा प्रकट की। तब शिवजी ने कहा- हमारी जीत-हार का गवाह कौन होगा? पार्वती ने तुरंत वहां घास के तिनके इकट्ठा करके एक पुतला बनाया और उसका अभिषेक करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, लेकिन यहां हार-जीत देखने वाला कोई नहीं है। इसलिए खेल के अंत में अपनी हार-जीत का साक्षी बनकर बताओ कि हममें से कौन जीता और कौन हारा?

खेल शुरू हो गया है। संयोग से पार्वतीजी तीनों बार विजयी हुईं। अंत में जब बालक के साथ जय-पराजय का निर्णय हो गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। इसके फलस्वरूप पार्वतीजी ने क्रोधित होकर उन्हें एक पैर में लंगड़ा होने और वहीं कीचड़ में लेटकर कष्ट उठाने का श्राप दे दिया।

बालक ने विनयपूर्वक कहा- माँ ! यह मैंने अनजाने में किया है। मैंने ऐसा किसी द्वेष या दुर्भावना से नहीं किया। मुझे क्षमा करें और मुझे श्राप से मुक्ति का उपाय बताएं। तब ममतरूपी मां को उस पर दया आ गई और उन्होंने कहा- यहां नाग-कन्याएं गणेश की पूजा करने आएंगी। उनकी सलाह से गणेश व्रत करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर वह कैलाश पर्वत पर चली गईं।

एक वर्ष के बाद वहां श्रावण में नाग-कन्याएं गणेश की पूजा करने आईं। सर्प-कन्याओं ने गणेश व्रत किया और उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। फिर उसके बाद उस बालक ने 12 दिनों तक भगवान गणेश जी का व्रत किया उसकी व्रत से प्रसन्न होकर भगवान गणेश जी ने उसे दर्शन दिए और कहा मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हुआ तुम जो चाहो मांग सम्मान सकते हो उसने अपनी मनइच्छा के अनुसार मांगते हुए कहा कि गणेश जी मेरे पैरों में इतनी शक्ति दे दो कि मैं अपने माता-पिता के पास कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं गणेश जी ने तथास्तु कहा और वहां से अंतर्ध्यान हो गए उसके बाद वह बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया तो भगवान शिव ने उससे वहां पहुंचने का साधन पूछा

तब बालक ने सारी कहानी भगवान शिव को कह सुनाई। उधर पार्वती उसी दिन से अप्रसन्न होकर शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। उसके बाद भगवान शंकर ने भी बालक भगवान गणेश की तरह 21 दिन का व्रत किया जिससे पार्वती के मन में स्वयं महादेव से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। वह जल्द ही कैलाश पर्वत पर पहुंच गई। वहां पहुंचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास दौड़ा चला आया हूं। शिवजी ने उन्हें ‘गणेश व्रत’ का इतिहास बताया।

तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन तक 21-21 दूर्वा, पुष्प और लड्डुओं से गणेशजी की पूजा की। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वतीजी से मिलने आए। उन्होंने भी माता के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।

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