संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप संतान सप्तमी व्रत कथा / Santan Saptami Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। यह व्रत भाद्रपद महीने में सप्तमी को रखा जाता है इसलिए इसे संतान सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत को माता-पिता दोनों रख सकते हैं।

संतान सप्तमी के दिन सच्चे दिल से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके व्रत रखा जाए तो संतान स्वस्थ रहती है और उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से आपकी संतान पर कभी भी जीवन में कोई आपदा नहीं आएगी। आप इस पोस्ट में संतान सप्तमी व्रत कथा इन हिंदी pdf को पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके संतान सप्तमी कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha PDF
Pages 1
Language Hindi
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Category Religion & Spirituality
Source pdfinbox.com
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संतान सप्तमी की कथा | Santan Saptami ki Katha

संतान सप्तमी व्रत कथा में राजा नहुष की पत्नी की भी कथा प्रसिद्ध है। एक समय अयोध्या में बड़े प्रतापी नहुष नामक राजा राज किया करते थे। राजा की पत्नी का नाम चंद्रमुखी था जिनकी एक प्रिय सहेली थी रूपमती। एक बार रानी चंद्रमुखी अपनी सहेली के साथ सरयू तट पर स्नान करने गयीं तो वहां उन्होंने देखा कि बहुत सी महिलाएं संतान सप्तमी व्रत का पूजन कर रही थीं।

रानी अपनी सहेली के साथ वहां बैठकर संतान सप्तमी व्रत पूजन देखने लगीं। उन्होंने भी निश्चय किया कि संतान प्राप्ति के लिए वह भी इस व्रत को रखा करेंगी। लेकिन समय अंतराल में वह भूल गईं। समय का चक्र चलता रहा और रानी और उनकी सहेली देह त्याग कर परलोक चली गई। फिर इनका पशु समेत अनेक योनियों में जन्म हुआ और उसके बाद उन्होंने अपने कर्म के फल से मनुष्य का शरीर प्राप्त किया।

रानी चंद्रमुखी ईश्वरी नामक राजकन्या हुई और उनकी सहेली रूपमती ब्राह्मण की कन्या हुई। इस जन्म में रूपमती को अपने पूर्वजन्म की सभी बातें याद थी। उसने संतान सप्तमी का व्रत किया जिससे उसे 8 संतान प्राप्त हुई। लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत को नहीं किया जिससे वह इस जन्म में भी निःसंतान थी। रूमती के पुत्रों को देखकर ईश्वरी को जलन होती थी और उसने कई बार उन्हें मारने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रही। बाद में उसने अपनी गलती मान ली और रूपमती से क्षमा मांगी। रूपमती ने ईश्वरी को क्षमा कर दिया और संतान सप्तमी व्रत करने के लिए कहा। इस व्रथ से ईश्वरी को भी संतान सुख की प्राप्ति हुई।

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