विजया दशमी की कथा | Vijaya Dashami Ki Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप विजया दशमी की  कथा / Vijaya Dashami Ki Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में विजयादशमी नाम के पीछे अनेक कारणों का वर्णन किया गया है। देवी भगवती के विजय नाम पर इस दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाने लगा।और इसी दिन भगवान श्री राम ने लंका पर जीत हासिल की थी। यह भी इसका यह नाम होने का एक प्रमुख कारण है।

क्षत्रियों का प्रमुख पर्व विजयदशमी को माना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से शस्त्र पूजा की जाती है। ब्राह्मण जन इस दिन माता सरस्वती का पूजन करते हैं। वहीं वैश्य लोग अपने बही खातों का पूजन करते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से पूजा आराधना करता है उसकी सभी समस्याओं का हल हो जाता है और जीवन में संपूर्ण सुखों की प्राप्ति होती है। आप इस पोस्ट के माध्यम विजयादशमी व्रत कथा / Vijaya Dashami Vrat Katha से को पढ़ सकते हैं। और आप नीचे दिए रहे डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।

विजया दशमी की कथा | Vijaya Dashami Ki Katha PDF – सारांश

PDF Name विजया दशमी की कथा | Vijaya Dashami Ki Katha PDF
Pages 1
Language Hindi
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Category Religion & Spirituality
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दशहरा की कथा | Dussehra Ki Katha

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से विजयादशमी के फल के बारे में पूछा। भगवान शिव ने उत्तर दिया- आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने पर विजय नामक काल होता है, जो सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो यह और भी शुभ हो जाता है। इस विजय काल में भगवान राम ने लंकापति रावण को हराया था।

इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव धनुष धारण किया था। भगवान शिव ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराने के बाद 12 वर्ष का वनवास और तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त रखी थी। यदि तेरहवें वर्ष में उनका पता चल जाता तो उन्हें 12 वर्ष का वनवास और भुगतना पड़ता।

इस अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष शमी वृक्ष पर छिपा दिया था और स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट की सेवा करते थे। जब गायों की रक्षा के लिए विराट पुत्र कुमार अर्जुन को अपने साथ ले गए तो अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठा लिया और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। विजयादशमी के दिन जब रामचन्द्रजी लंका पर आक्रमण करने के लिए निकले तो शमी वृक्ष ने रामचन्द्रजी की विजय की घोषणा की। इसीलिए दशहरे के दिन शाम को विजय काल में शमी की पूजा की जाती है।

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