नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र | Vishnu Sahasranamam PDF in Hindi में प्रदान करने जा रहे हैं। श्री विष्णु सहस्रनामम स्तोत्रम भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक भजनों में से एक है। भगवान विष्णु ब्रह्मांड के सर्वोच्च तीन देवताओं में से एक हैं जिन्हें त्रिमूर्ति (भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश या शिव) के रूप में जाना जाता है।
यदि आप अपने जीवन में भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको श्री हरि विष्णु नारायण के सामने श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए। यह सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला अत्यंत फलदायी स्तोत्र है। यदि आप भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आप निश्चित ही सही जगह पर आए हैं यहां से आप श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्रोत की पीडीऍफ़ डाउनलोड कर सकते हैं।
श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र | Vishnu Sahasranamam PDF in Hindi – सारांश
PDF Name | श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र | Vishnu Sahasranamam PDF in Hindi |
Pages | 20 |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
Source | pdfinbox.com |
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Sri Vishnu Sahasranama Stotram | Vishnu Sahasranama Lyrics
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥
ॐ अथ सकलसौभाग्यदायक श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ।
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ १॥
यस्य द्विरदवक्त्राद्याः पारिषद्याः परः शतम् ।
विघ्नं निघ्नन्ति सततं विष्वक्सेनं तमाश्रये ॥ २॥
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥ ३॥
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ॥ ४॥
अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने ।
सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे ॥ ५॥
यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् ।
विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ ६॥
ॐ नमो विष्णवे प्रभविष्णवे ।
श्रीवैशम्पायन उवाच —
श्रुत्वा धर्मानशेषेण पावनानि च सर्वशः ।
युधिष्ठिरः शान्तनवं पुनरेवाभ्यभाषत ॥ ७॥
युधिष्ठिर उवाच —
किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम् ।
स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम् ॥ ८॥
को धर्मः सर्वधर्माणां भवतः परमो मतः ।
किं जपन्मुच्यते जन्तुर्जन्मसंसारबन्धनात् ॥ ९॥
भीष्म उवाच —
जगत्प्रभुं देवदेवमनन्तं पुरुषोत्तमम् ।
स्तुवन् नामसहस्रेण पुरुषः सततोत्थितः ॥ १०॥
तमेव चार्चयन्नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम् ।
ध्यायन् स्तुवन् नमस्यंश्च यजमानस्तमेव च ॥ ११॥
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