त्रयोदशी व्रत कथा | Trayodashi Vrat Katha PDF

यहाँ इस पोस्ट में, हम आपको त्रयोदशी व्रत कथा / Trayodashi Vrat Katha PDF प्रदान करने जा रहे हैं। त्रयोदशी व्रत के व्रत को बहुत ही पवित्र माना जाता है और जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है और सच्चे दिल से भगवान की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती है। जैसा कि आप जानते हैं कि इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है यदि हम शास्त्रों की बात करें तो यदि आप पुण्य की प्राप्ति करना चाहते हैं तो इस व्रत को अवश्य रखें।

इस दिन त्रयोदशी व्रत अर्थात प्रदोष व्रत की कथा कार्य का जाप अवश्य करना चाहिए। इस लेख के माध्यम से आप त्रयोदशी की कथा बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं। साथ ही नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा की पीडीएफ भी डाउनलोड कर सकते हैं।

 

त्रयोदशी व्रत कथा | Trayodashi Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name त्रयोदशी व्रत कथा | Trayodashi Vrat Katha PDF
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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त्रयोदशी व्रत की कथा | Trayodashi Vrat Ki Katha

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उनके पति का निधन हो गया था। उसके पास अब कोई आश्रय नहीं था, इसलिए वह अपने बेटे के साथ सुबह-सुबह भीख मांगने निकल जाती थी। भीख मांगकर अपना और अपने बेटे का पेट भरती थी।

रोजाना की तरह जब एक दिन ब्राह्मणी घर वापस आ रही थी तो उसकी नजर एक लड़के पर पड़ी वह लड़का घायल था और दर्द की वजह से कराह रहा था ब्राह्मणी ने दया दिखाई और उसे अपने घर ले आयी वह लड़का कोई और नहीं बल्कि विदर्भ का राजकुमार था। दुश्मनों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया था और आक्रमण के पश्चात उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर अधिकार कर लिया, अत: वह इधर-उधर घूमता रहा। राजकुमार ब्राह्मण के पुत्र के साथ ब्राह्मण के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उसे उससे प्रेम हो गया। अगले दिन अंशुमती अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उसे भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद, अंशुमती के माता-पिता को भगवान शंकर ने स्वप्न में राजकुमार और अंशुमती का विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने ऐसा ही किया।

ब्राह्मण प्रदोष व्रत करते थे। अपने व्रत के प्रभाव से और गन्धर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने शत्रुओं को विदर्भ से खदेड़ दिया और अपने पिता का राज्य पाकर सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधान मंत्री बना लिया। जिस प्रकार ब्राह्मणों के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से राजकुमार और ब्राह्मण पुत्र के दिन बदल जाते हैं, उसी प्रकार भगवान शंकर भी अपने अन्य भक्तों के दिन बदल देते हैं। जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से इस व्रत को रखता है और सही विधि के साथ करता है उस पर सदैव भगवान शंकर की कृपा बनी रहती है।

बोलिए शंकर भगवान की जय

 

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