नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए स्वामी समर्थांची आरती / Swami Samarth Aarti PDF in Hindi में प्रदान करने जा रहे हैं। स्वामी समर्थ जी महाराज जी का जन्म सन 1275 के आसपास हुआ था स्वामी जी को महाराट्र, कर्नाटका और आंध्र प्रदेश में गंगापुर के स्वामी नरसिंघ सरस्वती के नाम से जाना जाता है। और कही कही पे इनको चंचल भारती व् दिगम्बर स्वामी के नाम से भी जाना जाता है। स्वामी जी ने लगभग 400 वर्षो तक तपश्या की थी और उन्होंने अपने भगतो को ज्ञान दिया था स्वामी जी शल्य यात्रा के दौरान कर्दली वन में विलुप्त हुए थे।
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स्वामी समर्थांची आरती | Swami Samarth Aarti PDF in Hindi – सारांश
PDF Name |
स्वामी समर्थांची आरती | Shree Swami Samarth Aarti PDF in Hindi |
Pages | 7 |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
Source | pdfinbox.com |
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श्री स्वामी समर्थ महाराज जी आरती | Shri Swami Samarth Maharaj ji Arti in Hindi
II काकड आरती II
ओवाळीतो काकड आरती, स्वामी समर्थ तुजप्रती। स्वामी समर्थ तुजप्रती।I
चरण दावी जगत्पते।
स्मरतो तुझी अभिमूर्ती॥धृ॥
भक्तजन येऊनिया दारी, उभे स्वामीराया। दारी उभे स्वामीराया।
चरण तुझे पहावया।
तिष्ठती अती प्रीती॥1॥
भक्तांच्या कैवारी समर्था, समर्थ तु निरधारी। समर्था समर्थ तु निरधारी।
भेट घेऊन चरणावरी।
गातो आम्ही तुझी स्तुती॥2॥
पूर्णब्रम्ह देवाधिदेवा निरंजनी, तुझा ठावा। निरंजनी तुझा ठावा।
भक्तासाठी देहभाव।
तारिसी तु विश्वपती॥3॥
स्वामी तुची कृपाघन, ऊठुन देई दर्शन। ऊठुन देई दर्शन।
स्वामीदास चरण वंदी।
मागतसे भावभक्ती॥4॥
Swami Samarth Aarti 1st
जय देव, जय देव, जय श्री स्वामी समर्था, जय श्री स्वामी समर्था।
आरती ओवाळू चरणी, ठेउनिया माथा।।धृ।।
छेलि खेडे ग्रामी, तु अवतरलासी, राया अवतरलासी।
जग्दउध्दारासाठी राया तु फिरसी।
भक्तवत्सल खरा तु एक होसी,
राया एक होसी।
म्हणुनी शरण आलो तव चरणासी।
जय देव, जय देव० ……. ॥1॥
त्रैगुण-परब्रम्ह तुझा अवतार,
तुझा अवतार।
त्याची काय वर्णु लिला पामर।
शेशादिक क्षीणले नलगे त्या पार,
नलगे त्या पार।
तेथे जडमुढ कैसा करु मी विस्तार।
जय देव, जय देव० ……. ॥2॥
देवाधिदेवा तु स्वामी राया,
तु स्वामी राया।
निरजर मुनीजन ध्याती भावे तव पाया।
तुझसी अर्पण केली आपुली ही काया,
आपुली ही काया।
शरणागता तारी तु स्वामी राया।
जय देव, जय देव० ……. ॥3॥
अघटीत लिला करुनी जडमुढ उध्दारिले,
जडमुढ उध्दारिले।
किर्ती एकूनी कानी चरणी मी लोळे।
चरण प्रसाद मोठा मज हे अनुभवले,
मज हे अनुभवले।
तुझ्या सुता नलगे चरणा वेगळे।
जय देव, जय देव० ……. ॥4॥
Shree Swami Samarth Maharaj Aarti Lyrics – 2nd
जय जय सद्-गुरु स्वामी समर्था,
आरती करु गुरुवर्या रे।
अगाध महिमा तव चरणांचा,
वर्णाया मति दे यारे॥धृ॥
अक्कलकोटी वास करुनिया,
दाविली अघटित चर्या रे।
लीलापाशे बध्द करुनिया,
तोडिले भवभया रे……..॥1॥
यवन पूछिले स्वामी कहाॅ है,
अक्कलकोटी पहा रे।
समाधी सुख ते भोगुन बोले,
धन्य स्वामीवर्या रे…….॥2॥
जाणिसे मनीचे सर्व समर्था,
विनवू किती भव हरा रे।
इतुके देई दीनदयाळा,
नच तव पद अंतरा रे………॥3॥
अक्कलकोट स्वामी समर्थांची आरती | Akkalkot Swami Samarth Aarti – 3rd
आरती स्वामी राजा।
कोटी आदित्यतेजा। तु गुरु मायबाप।
प्रभू अजानुभुजा। आरती स्वामी राजा॥धृ॥
पुर्ण ब्रम्ह नारायण।
देव स्वामी समर्थ। कलीयुगी अक्कलकोटी।
आले वैकुंठ नायक। आरती स्वामी राजा….॥1॥
लीलया उध्दरिले।
भोळे भाबडे जन। बहुतीव्र साधकासी।
केले आपुल्या समान। आरती स्वामी राजा….॥2॥
अखंड प्रेम राहो।
नामी ध्यानी दयाळा। सत्यदेव सरस्वती। म्ह
णे आम्हा सांभाळा। आरती स्वामी राजा…॥3॥
Shri Swami Samarth Maharaj Ji Aarti 4th
जय देव जय देव, जय जय अवधूता, हो स्वामी अवधूता।
अगम्य लीला स्वामी, त्रिभुवनी तुझी सत्ता।।
जय देव जय देव….॥धृ॥
तुमचे दर्शन होता जाती ही पापे।
स्पर्शनमात्रे विलया जाती भवदुरिते।
चरणी मस्तक ठेवूनि मनि समजा पुरते।
वैकुंठीचे सुख नाही या परते।।
जय देव जय देव…..॥1॥
सुगंध केशर भाळी वर टोपी टिळा।
कर्णी कुंडल शोभति वक्षस्थळी माळा।
शरणागत तुज होतां भय पडले काळा।
तुमचे दास करिती सेवा सोहळा।।
जय देव जय देव…..॥2॥
मानवरुपी काया दिससी आम्हांस।
अक्कलकोटी केले यतिवेषे वास।
पूर्णब्रम्ह तूची अवतरलासी खास।
अज्ञानी जीवास विपरीत भास।।
जय देव जय देव…..॥3॥
र्निगुण र्निविकार विश्वव्यापक।
स्थिरचर व्यापून अवघा उरलासी एक।
अनंत रुपे धरसी करणे नाएक।
तुझे गुण वर्णिता थकले विधीलेख।।
जय देव जय देव…..॥4॥
घडता अनंत जन्मे सुकृत हे गाठी।
त्याची ही फलप्राप्ती सद्-गुरुची भेटी।
सुवर्ण ताटी भरली अमृत रस वाटी।
शरणागत दासावर करी कृपा दृष्टी।।
जय देव जय देव…..॥5॥
कर्पूरिती
कापूराची वात, ओवाळु तुजला, स्वामी ओवाळु तुजला।
देहभाव अहंकार, सहजी जाळीला…….॥धृ॥
दया क्षमा शांती, ह्या उजळल्या ज्योती, स्वामी उजळल्या ज्योती।
स्वयंप्रकाशरुप, देखिली स्वामींची मुर्ती।।
कापूराची वात०……..॥1॥
मी तु पण काजळ काजळी गेली, स्वामी काजळी गेली।
निजानंदे तनु पायी अर्पियली।।
कापूराची वात०……..॥2॥
आनंदाने भावे कापूर्रारती केली, स्वामी कापूर्रारती केली।
पंचतत्व भाव तनु पायी अर्पियली।।
कापूराची वात०……..॥3॥
विडा:
विडा घ्या हो स्वामीराया, धरुनी मानवाची काया।
यतीवेष घेऊनीया वससी।
दीनासी ताराया।
विडा घ्या हो स्वामीराया……॥धृ॥
ज्ञान हे पूगीफळ। भक्ती नागवल्ली दळ।
वैराग्य चुर्ण विमल। लवंगा सत्-क्रिया सकळ।
विडा घ्या हो स्वामीराया……॥1॥
प्रेम रंगवी जैसा कात।
विडा अष्टभाव सहीत।
जायफळ क्रोधरहित।
पत्री सर्व भूसहीत।
विडा घ्या हो स्वामीराया……॥2॥
खोबरे हेचि क्षमा।
फोडुनी द्वैताच्या बदामा।
मनोजयाचा वर्ख हेमा।
कापुर हा शांतिनामा।
विडा घ्या हो स्वामीराया……॥3॥
कस्तुरी निरहंकार।
कोठे न मिळता उपचार।
भीमापुत्र यास्तव फार।
साह्य देऊनी वारंवार।
विडा घ्या हो स्वामीराया……॥4॥
शेजारती:
आता स्वामी सुखे निद्रा करा अवधूता।
स्वामी करा अवधूता।
चिन्मय सुखधामी जाउनी, पहुडा एकांता….॥धृ॥
वैराग्याचा कुंचा घेवूनी चौक झाडीला।
स्वामी हो चौक झाडीला।
तयावरी सप्रेमाचा शिडकावा केला…..॥1॥
पायघड्या घातल्या सुंदर नवविध भक्ती।
स्वामी नवविध भक्ती।
ज्ञानाच्या समया उजळूनी लावियल्या ज्योती…..॥2॥
भावार्थाचा मंचक हृदयाकाशी टांगिला।
हृदयाकाशी टांगिला।
मनाची सुमने करुन गेला शेजेला….॥3॥
द्वैताचे कपाट लावूनी एकत्र केले।
गुरुने एकत्र केले। दु
र्बुध्दीच्या गाठी सोडूनी पडदे सोडले….॥4॥
आशा तृष्णा कल्पनांचा सांडूनी गलबला।
गुरु हा सांडूनी गलबला।
दया क्षमा शांती दासी उभ्या सेवेला…..॥5॥
अलक्ष उन्मन सेवूनी स्वामी नाजूक हा शेला।
गुरु हा नाजूक शेला।
निरंजन सद्-गुरु स्वामी निजे शेजेला….॥6॥
आता स्वामी सुखे निद्रा०………….
आरती नंतर, म्हणायाचा श्लोक
सदा सर्वदा योग तुझा घडावा।
तुझे कारणी देह माझा पडावा।
उपेक्षु नको गुणवंता अनंता।
स्वामी समर्था मागणे हेचि आता….॥1॥
उपासनेला दृढ चालवावे।
भूदेव संतासि सदा नमावे।
सत्कर्मयोगे वय घालवावे।
सर्वांमुखी मंगल बोलवावे….॥2॥
दयाळू खरा सद्-गुरु स्वामी माझा।
उडी घालितो संकटी भक्तकाजा।
गुरुरुप देखोनी हा काळ भ्याला।
नमस्कार माझा सद्-गुरुराज याला…॥3॥
जोडुनिया पाणी अनन्य भावे।
मी मागतो मागणे हेचि द्यावे।
हे चित्त तुझे चरणी आसु दे।
श्रीस्वामी जय स्वामी मुखी वसु दे….॥4॥
सदा चांगली बुध्दि आम्हास द्यावी।
मनी कल्पना विषयाची नसावी।
गुरुविण वाटे उणे संपदाही।
स्वामी समर्था असे प्रार्थना ही….॥5॥
मना सद्-गुरुचे नाम हे फार गोड।
तया गोडीलागी नसे दुजी जोड।
तया गोडीच्या काय वर्णु सुखाला।
मना चिंत तू सद्-गुरुच्या पदाला….॥6॥
आरती: ( क्षमा प्रार्थना )
अपराध क्षमा आतां केला पाहिजे।
गुरु हा केला पाहिजे।।
अयध्द सुबध्द गुण वर्णियले तुझे॥धृ॥
न कळेची टाळ वीण वाजला कैसा।
गुरु हा वाजला कैसा।।
अस्ताव्यस्त पडेना गेला भलतैसा।।
अपराध क्षमा०……….॥1॥
नाही ताल ज्ञान कंठ सुस्वर।
गुरु हा कंठ सुस्वर।।
झाला नाही बरा वाचे वर्ण उच्चार।।
अपराध क्षमा०………॥2॥
निरांजन म्हणे तुझे वेडे वाकुडे।
गुरु हे वेडे वाकुडे।।
गुण दोष न लावावा सेवकाकडे।।
अपराध क्षमा०……..॥3॥
।।श्री स्वामीसमर्थार्पणमस्तु।।
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