शनि चालीसा | Shani Chalisa PDF in Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए शनि चालीसा / Shani Chalisa PDF in Hindi  में प्रदान करने जा रहे हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत भगवान शनिदेव को बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है और भगवान शनिदेव की पूजा करने से बुरी शक्तियां इंसान से हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं। शनि देव जी की कृपा छाया जिस भी व्यक्ति पर बनी रहती है उसे अपने जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। मुख्य रूप से शनि देव जी को सूर्य देव का पुत्र माना जाता है। भगवान शनि देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे कहा कि मुझे भी मेरे पिता सूर्य की तरह शक्तिमान बनना है।

भगवान शिव ने शनि देव जी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान होगा और इंसान के साथ-साथ देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे। यदि आप भगवान शनि देव की उपासना करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह है यहां से आप शनि चालीसा आसानी से पढ़ सकते हैं साथ ही बिना किसी परेशानी के उसके पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

शनि चालीसा | Shani Chalisa PDF in Hindi – सारांश

PDF Name शनि चालीसा | Shani Chalisa PDF in Hindi
Pages 3
Language Hindi
Category Religion & Spirituality
Source pdfinbox.com
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शनि चालीसा पाठ | Shani Chalisa Lyrics


।। दोहा ।।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।।

।। चौपाई ।।

जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।।
चारि भुजा तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ।।
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिय माल मुक्तन मणि दमकै ।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ।।

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।।
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं । रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ।।
पर्वतहू तृण होई निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ।।

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ।।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ।।
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ।।
रावण की गति मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।।
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग  बीर की डंका ।।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ।।
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ।।
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ।।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पार्वती को सती कराई ।।
तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ।।
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ।।
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ।।
शेष देवलखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ।।

वाहन प्रभु के सात सजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पति उपजावैं ।।
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्धकर राज समाजा ।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।।

तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ।।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ।।
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी ।।

जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।।

।। दोहा ।।

पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार । करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।

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