सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप सावन सोमवार व्रत कथा / Sawan Somvar Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवा महीना श्रावण का होता है सभी लोग अपनी आम भाषा में इसे सावन भी कहते हैं हिंदू धर्म के अंतर्गत इस महीने को बहुत ही अधिक पवित्र माना जाता है और यह भी कहा जाता है कि यह भगवान शिव का बहुत ही पसंदीदा महीना है। सावन के महीने से ही सोलह सोमवार के व्रत की शुरुआत की जानी चाहिए।

जो भी व्यक्ति सावन महीने में सोमवार का व्रत रखता है उसे मनचाही वस्तु की प्राप्ति होती है। आप भगवान शिव का व्रत रखना चाहते व्रत रखते हैं और सच्चे दिल से पूजा करते हैं तो आपको कभी भी किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। भगवान शिव का आशीर्वाद आप पर और आपके परिवार पर हमेशा बना रहेगा। आप इस पोस्ट के माध्यम से Sawan Somvar Vrat Katha Hindi में आसानी से पढ़ सकते हैं साथ ही पीडीएफ नीचे डाउनलोड बटन पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं।

 

सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name सावन सोमवार व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha PDF
Pages 4
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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सावन सोमवार की व्रत कथा | Sawan Somvar Vrat Katha PDF Download

अमरपुर नगर में एक व्यापारी रहता था जो बहुत ही धनी था उसका कारोबार बहुत ही बड़ा और अपने आसपास के सभी क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैला हुआ था नगर में रहने वाले सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे परंतु व्यापार होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुखी रहता था क्योंकि उस व्यापारी का कोई भी पुत्र नहीं था।

उसे दिन-रात एक ही चिंता सताती रहती थी। उनकी मौत के बाद उनके इतने बड़े कारोबार और संपत्ति की देखभाल कौन करेगा। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वह व्यापारी प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का व्रत और पूजन करता था। शाम के समय व्यापारी शिव मंदिर जाता था और भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाता था।

इसके बावजूद पार्वतीजी ने उस व्यापारी की भक्ति स्वीकार नहीं की। उन्होंने आग्रह करके कहा-‘जब काफी दिनों तक भगवान शिव की पूजा करने के बाद माता पार्वती ने उसकी भक्ति को स्वीकार नहीं किया तो वह कहता है कि प्राणनाथ आपको मेरी इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी क्योंकि मैं आपका अनन्य भक्त हूं वह प्रत्येक सोमवार को आपका व्रत रखता है और आपकी पूजा करके आपको भोजन कराता है और एक समय भोजन करता है। तुम्हें उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना होगा।’

पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन उनका बेटा 16 साल से ज्यादा जीवित नहीं रहेगा। उसी रात, भगवान शिव ने व्यापारी को सपने में दर्शन दिए और उसे एक पुत्र का आशीर्वाद दिया और कहा कि उसका पुत्र 16 वर्ष तक जीवित रहेगा।

जब व्यापारी को भगवान शिव ने वरदान दिया तो वह खुश तो हुआ परंतु पुत्र केवल 16 साल तक जीवित रहेगा इस बात से उसकी खुशी चिंता में बदल गई फिर दोबारा से व्यापारी ने सोमवार का व्रत करना शुरू कर दिया कुछ महीनों के बाद उसके घर एक अत्यंत सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र के जन्म से व्यापारी का घर खुशियों से भर गया। पुत्र-जन्म का समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया।

व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्पायु का रहस्य पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। जब अमर 12 वर्ष के हुए तो उन्हें शिक्षा के लिए वाराणसी भेजने का निर्णय लिया गया। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और अमर की शिक्षा के लिए वाराणसी छोड़ने को कहा। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने चला गया।

रास्ते में अमर और दीपचंद जहां भी रात्रि विश्राम के लिए रुकते, वहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते। लम्बी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुँचे। उस नगर के राजा की पुत्री के विवाह के उपलक्ष्य में पूरे नगर को सजाया गया था। बारात निश्चित समय पर आ गई लेकिन दूल्हे के पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित थे। उसे चिंता थी कि यदि राजा को इस बात का पता चला तो वह विवाह से इंकार कर सकता है। इससे उसकी बदनामी होगी.

दूल्हे के पिता ने जब अमर को देखा तो उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा कि क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। उसने सोचा की शादी होने के बाद मैं इस लड़के को धन देकर भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।

दूल्हे के पिता ने इस संबंध में अमर और दीपचंद से बात की। धन पाने के लालच में दीपचंद ने दूल्हे के पिता की बात मान ली। अमर को दूल्हे के वेश में सजाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह कराया गया। राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।

जब अमर लौट रहा था तो वह सच्चाई छिपा न सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- ‘अमर लिखता है कि राजकुमारी तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु मैं तो शिक्षा ग्रहण करने के लिए वाराणसी जा रहा हूं अब तुम्हें जिस युवक की पत्नी बन कर रहना पड़ेगा उसका नाम काना है।

जब राजकुमारी ने अपने घूँघट पर लिखी बात पढ़ी तो उसने उस अंधे लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। जब यह बात राजा को पता चली तो उसने राजकुमारी को अपने महल में रख लिया और दूसरी तरफ अमर शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में रहकर पढ़ने लगा
जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ कराया। यज्ञ के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराया गया और खूब भोजन और वस्त्र दान किये गये।

रात को अमर अपने शयनकक्ष में सोया। शिव के वरदान के अनुसार निद्रा में ही अमर के प्राण पखेरू उड़ गये। सूर्योदय होने पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र हो गए और दुख व्यक्त करने लगे। जब माता पार्वती और भगवान शिव वहां से गुजर रहे थे तो उन्होंने मामा के रोने की आवाज सुनी मामा की आवाज सुनकर माता पार्वती जी ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ मैं उसके रोने की आवाज सहन नहीं कर सकता. आपको इस व्यक्ति का कष्ट अवश्य दूर करना चाहिए।

जब भगवान शिव पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप गये और अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले- ‘पार्वती! इस लड़के को मैंने केवल 16 साल तक की आयु में जीवित रहने का वरदान दिया था अब इसके 16 साल समाप्त हो गए हैं

यह सब सुनकर माता पार्वती दोबारा भगवान शिव से निवेदन करती है कि प्राणनाथ ! आप इस बालक को जीवित कर दीजिये। अन्यथा उसके माता-पिता अपने पुत्र की मृत्यु के कारण रोते-रोते अपने प्राण त्याग देंगे। इस लड़के के पिता जो बहुत बड़े व्यापारी हैं आपके परम भक्त हैं वह वर्षों से आप को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का व्रत करते आ रहे हैं माता पार्वती की यह बात सुनकर भगवान शिव ने लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और थोड़ी ही देर में लड़का फिर से जीवित हो गया।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह अपने मामा के साथ अपने गृहनगर चले गये। जब अमर और उसके मामा उस नगर से गुजर रहे थे जहां अमर की शादी हुई वहां भी उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया उस नगर का राजा भी वहीं से गुजर रहा था तो उसने यज्ञ को होते हुए देखा राजा ने जैसे ही अमर को देखा तुरंत उसको पहचान लिया और यज्ञ समाप्ति के बाद अमर और उसके मामा को अपने महल में ले गया और कई दिनों के पश्चात उन्हें बहुत सारा धन और वस्त्र देकर अपनी बेटी के साथ विदा कर दिया उसने अपनी बेटी, अमर और अमर के मामा की सुरक्षा के लिए कई सैनिक भी उनके साथ भेजें अमर के मामा दीपचंद ने नगर पहुंचते ही सबसे पहले एक दूत को घर भेज कर अपने आने की सूचना दी जब व्यापारी को यह पता चला कि उसका बेटा अमर जीवित लौट रहा है तो उसे बहुत ही खुशी हुई।

व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था। व्यापारी और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर अपने पुत्र की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि यदि उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।

व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों को साथ लेकर नगर के द्वार पर पहुँचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। और उसी रात भगवान से व्यापारी के सपने में आए और कहते हैं कि मैं तुम्हारे सोमवार व्रत से बहुत ही प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लम्बी आयु दी है। ‘व्यापारी बहुत खुश हुआ।

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियाँ लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का व्रत करते हैं और व्रत कथा सुनते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। वह कितने दिनों से नियमित रूप से सोमवार का व्रत और पूजन कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की इच्छा अवश्य पूरी करें।

भगवान शिव मुस्कुराये और बोले- ‘हे पार्वती! इस संसार में हर किसी को उसके कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल मिलता है।

जो भी इस कथा को ध्यान से सुनता है और भगवान शिव की सच्चे दिल से पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान अवश्य ही पूरी करते हैं।

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