नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए श्री राम जी की आरती / Ram Ji Ki Aarti PDF in Hindi में प्रदान करने जा रहे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार दसरथ की तीन पत्निया थी कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी, श्री राम जी दसरथ के प्रथम पत्नी कौशल्या के पुत्र थे श्री राम जी चार भाई थे राम, भरत,लक्समन, सत्रुघन, श्री राम जी सबसे बड़े थे और सबके प्रिय उनका स्वाभाव बोहोत ही मन भवन था सबके चहेते और अपनी प्रजा से प्यार करने वाले और आज के युग म भगवन श्री राम जी पूजा हर जगह होती है भगवन श्री राम जी अयोध्या में जन्मे थे और आज के युग में वह पे बोहोत ही भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है हम आपको वही भगवन श्री राम जी की आरती यह पे देने जा रहे है,
आज हम आप सभी के लिए आरती श्री राम जी की लेकर आए हैं इससे आप भगवान राम के चरणों में अपना ध्यान लगा सकते हैं और अपने दुखों को भगवान के साथ साझा कर सकते हैं इससे आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। आप पर भगवान राम की कृपा हो जाएगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक पोस्ट या किसी भी प्रकार की पोस्ट देखने के लिए हमारी ऑफिशल वेबसाइट पर अवश्य ही विजिट करें आप यहां से आरती श्री राम जी की को आसानी से पढ़ सकते हैं साथ ही उसकी पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।
श्री राम जी की आरती | Ram Ji Ki Aarti PDF in Hindi – सारांश
PDF Name | Arti Shri Ram Ji Ki |
Pages | 1 |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
Source | pdfinbox.com |
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Ram Navami Ki Aarti | Aarti Shri Ram Ji Ki
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि, शुचि नौमी जनक सुतावरम्।। श्री राम चंद्र……….
भजु दीन बंधु दिनेश, दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल, चंद दशरथ नन्दनम्।। श्री राम चंद्र……….
सिर मुकुट कुण्डल तिलक, चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खर-धूषणं।। श्री राम चंद्र……….
इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु, कामादी खल दल गंजनम्।। श्री राम चंद्र……….
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि, सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान, सिलू सनेहू जानत रावरो।। श्री राम चंद्र……….
एही भांती गौरी असीस, सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी, मुदित मन मंदिर चली।। श्री राम चंद्र……….
जानि गौरी अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल, वाम अंग फरकन लगे।। श्री राम चंद्र……….
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