प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha PDF In Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए प्रदोष व्रत कथा / Pradosh Vrat Katha PDF In Hindi  में प्रदान करने जा रहे हैं। प्रदोष व्रत कथा का संबंध एक राजकुमार से है तथा इस कहानी में मुख्य रूप से प्रदोष व्रत के महत्व को दर्शाया गया है। प्रदोष व्रत हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से प्रदोष व्रत रखता है और निरंतर पूजा करता है उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं आती।

आज हम आप सभी के लिए प्रदोष व्रत की कथा को प्रस्तुत करने जा रहे हैं यहां से बिना किसी कठिनाई के प्रदोष व्रत को आसानी से पढ़ सकते हैं साथ ही बिना किसी परेशानी के उसके पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं ऐसी ही अन्य पोस्ट देखने के लिए क्लिक करें। यदि आप चाहें तो इसे अपने दोस्तों के साथ नीचे दिए गए शेयर बटन पर क्लिक करके शेयर भी कर सकते हैं यदि आप किसी अन्य विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में बताएं हम प्रयास करेंगे कि आपको संपूर्ण जानकारी पीडीऍफ़ के माध्यम से उपलब्ध करा सकें।

प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha PDF In Hindi – सारांश

PDF Name प्रदोष व्रत कथा | Pradosh Vrat Katha PDF In Hindi
Pages 1
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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प्रदोष व्रत की कहानी | Pradosh Vrat ki Kahani

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा मांगने के लिए जाती है वह प्रतिदिन सुबह भिक्षा मांगने के लिए जाती और शाम को वापस आती थी एक दिन जब वह शाम को भिक्षा मांग कर वापस आ रही थी तो उसे एक सुंदर बालक दिखाई दिया वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था शत्रुओं में उसके पिता को मार दिया और उसकी माता की मृत्यु अकाल की वजह से हो गई उस ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसे उसका पालन-पोषण करने लगी।

कुछ समय के पश्चात वह ब्राह्मणी दोनों बच्चों के साथ देवयोग के रास्ते से देव मंदिर गई और वहां उसकी मुलाकात ऋषि शांडिल्य से हुई उन्होंने बताया कि उनके साथ जो एक बच्चा है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है और उस बच्चे के पिता को शत्रु ने मार दिया और उनकी माता को ग्राह ने अपना शिकार बना लिया ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी और ब्राह्मणी के साथ-साथ दोनों बच्चों ने भी प्रदोष व्रत रखना प्रारंभ कर दिया।

1 दिन दोनों बच्चे वन में घूम रहे थे तुम उन्हें वहां पर गंधर्व कन्याएँ नजर आई ब्राह्मण बच्चा तो वापस आ गया परंतु राजा का पुत्र उन कन्याओं के पीछे पीछे चल दिया और अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगा दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए गंधर्व कन्या ( अंशुमती ) ने विवाह के लिए राजकुमार के पुत्र को अपने घर बुलाया।

दूसरे दिन जब दोबारा राजकुमार अंशुमती से मिलने आया तो अंशुमती ने अपन पिता को बताया कि यह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है उसके बाद भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त के साथ किया और राजकुमार ने गंधर्व की सेना की सहायता से विदर्भ देश को फिर से जीत लिया यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत के कारण ही संभव हो पाया स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति सच्चे दिल से प्रदोष व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है और उस पर असीम कृपा छाया बनी रहती है।

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