नमामि शमीशान PDF | Namami Shamishan PDF in Hindi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप नमामि शमीशान PDF / Namami Shamishan PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। नमामि शमीशान की रचना तुलसीदास जी द्वारा की गई और यह भगवान शिव को समर्पित है नमामि शमीशान की रचना तुलसीदास जी ने उत्तर प्रदेश में पंद्रहवी शताब्दी के अंत में की थी। इन्होंने नमामि शमीशान के साथ-साथ रामचरितमानस का भी निर्माण किया था नमामि शमीशान में मुख्य रूप से एक अष्टकम है अर्थात इसे आठ छंदों वाली प्रार्थना के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान शिव की अभिव्यक्ति के रूप में रूद्र को माना जाता है जिनसे डरना नहीं चाहिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तुति का यह आठ गुना भजन गाया गया था। जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से इसका जाप करेगा और भगवान शिव को प्रसन्न करेगा भगवान निश्चित ही उस पर अपनी कृपा छाया बनाए रखेंगे और उसे सांसारिक जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। आप इस लेख के माध्यम से बिना किसी परेशानी के नमामीशमीशान निर्वाण रूपं को पढ़कर उसका जाप कर सकते हैं। साथ ही नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके उसकी पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

 

नमामि शमीशान PDF | Namami Shamishan PDF in Hindi – सारांश

PDF Name नमामि शमीशान PDF | Namami Shamishan PDF in Hindi
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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नमामीशमीशान निर्वाण रूपं PDF | Namami shamishan nirvan roopam lyrics PDF

 

|| नमामि शमीशान ||

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

 

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