नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप महेश नवमी व्रत कथा / Mahesh Navami Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के आधार पर जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी के रूप में मनाया जाता है। महेश नवमी की पूजा को बहुत ही पवित्र व फलदाई माना जाता है इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का प्रावधान है यदि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, पाना चाहता है तो उसे यह व्रत अवश्य ही रखना चाहिए।
कोई भी व्यक्ति जो पीड़ा से गुजर रहा है उसके लिए भी यह व्रत बहुत ही अधिक फल देने वाला है। इस व्रत को रखने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं यदि आप पूर्ण आस्था के साथ इस व्रत को रखते हैं तो आपको अपने जीवन में किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा इस लेख के माध्यम से आप बिना किसी परेशानी के महेश नवमी की प्रामाणिक कथा पढ़ सकते हैं। साथ ही अगर आप इसकी पीडीएफ डाउनलोड करना चाहते हैं तो हमने नीचे एक डाउनलोड बटन दिया है उस पर क्लिक करके आप बिना किसी परेशानी के पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।
महेश नवमी व्रत कथा | Mahesh Navami Vrat Katha PDF – व्याख्या
PDF Name | महेश नवमी व्रत कथा | Mahesh Navami Vrat Katha PDF |
Pages | 1 |
Source | pdfinbox.com |
Language | Hindi |
Category | Religion & Spirituality |
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महेश नवमी की कथा | Mahesh Navami Ki Katha
प्राचीन कथाओं के अनुसार खड़कसेन नाम का एक प्रसिद्ध राजा था उसकी एक भी संतान नहीं थी उसने काफी जतन किए परंतु फिर भी उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई घोर तपस्या करने के बाद राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। ऋषियों ने राजा को बताया कि सुजान को 20 वर्ष तक उत्तर दिशा में जाने से मना किया गया है। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो उसे युद्ध कला और शिक्षा का ज्ञान हुआ।
वह राजकुमार बचपन से ही जैन धर्म को बहुत मानते थे 1 दिन की बात है कि राजकुमार 72 सैनिकों के साथ शिकार के लिए जाते हैं परंतु वह उत्तर दिशा की ओर चले जाते हैं सैनिकों ने राजकुमार को काफी समझाया परंतु राजकुमार ने सैनिकों की बात नहीं मानी जैसे ही राजकुमार उत्तर दिशा की ओर आगे बढ़ता है वहां पर एक ऋषि तपस्या कर रहे थे राजकुमार के पहुंचने से उस ऋषि की तपस्या भंग हो जाती है और वह ऋषि राजकुमार को श्राप दे देता है जैसे ही राजकुमार को श्राप मिलता है राजकुमार पत्थर का बन जाता है राजकुमार के साथ जितने भी सैनिक थे वे सभी पत्थर के बन गए।
जब इस बात की जानकारी राजकुमार की माता चंद्रावती को हुई तो उन्होंने तुरंत उस ऋषि के पास जंगल में जाकर उससे माफी मांगी और अपने पुत्र को श्राप से मुक्त करने के लिए कहा उस ऋषि ने चंद्रावती को कहा कि महेश नवमी का व्रत करके राजकुमार को जीवनदान मिल सकता है और चंद्रावती ने महेश नवमी का व्रत किया जिससे उसके बेटे को जीवनदान मिला उसी दिन से इस दिन भगवान शंकर वह माता पार्वती की पूजा की जाती है और जो भी इस व्रत को सच्चे दिल से करता है भगवान निश्चित ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
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