कात्यायनी माता की व्रत कथा | Katyayani Mata Ki Vrat Katha in Hindi PDF

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए कात्यायनी माता की व्रत कथा | Katyayani Mata Ki Vrat Katha in Hindi PDF में प्रदान करने जा रहे हैं। नवरात्रों के छठे दिन कात्यानी माता की पूजा की जाती है भक्तों द्वारा कात्यायनी माता की पूजा बहुत ही सहजता और सफाई से की जाती है ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति कात्यानी देवी की पूजा दिल से करता है उसे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता कात्या गोत्र की एक प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन ने मां भगवती की पूजा की और मां भगवती को प्रसन्न किया।

मां भगवती ने साक्षात उनके घर में जन्म लिया। उनका नाम कात्यानी पड़ गया माता का गुण शोध कार्य है।इसलिए वैज्ञानिक युग में कात्यायनी माता का बहुत महत्व है। इनकी सर्वाधिक पूजा की जाती है।  माता की कृपा से सभी कार्य संपूर्ण हो जाते हैं और वैद्यनाथ स्थान में माता पूजी गईं। यहाँ से आप माता की कथा को आसानी से पढ़ सकते हैं साथ ही उसकी बिना किसी परेशानी के पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

कात्यायनी माता की व्रत कथा | Katyayani Mata Ki Vrat Katha in Hindi PDF – सारांश

PDF Name कात्यायनी माता की व्रत कथा | Katyayani Mata Ki Vrat Katha in Hindi PDF
Pages 1
Language Hindi
Category Religion & Spirituality
Source pdfinbox.com
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नवरात्रि छठे दिन की कथा | Mata Katyayani Ki Kahani

माता कात्यायनी का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इस विषय में भी एक अलग रूप से कथा है एक कत नाम के बहुत ही प्रसिद्ध महर्षि थे। उसके पश्चात उनका पुत्र हुआ जिसका नाम का कात्या था और कात्या तब से यह गोत्र चला रहा है। उन्होंने भगवती पराम्बा की आराधना करते हुए कई वर्षों तक अत्यंत कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय बाद जब पृथ्वी पर राक्षस महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी की रचना की। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम उनकी पूजा की।

इस कारण वह कात्यायनी कहलाईं। ऐसी भी एक कथा है कि इनका जन्म महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में हुआ था। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद उन्होंने शुक्त सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक तीन दिनों तक ऋषि कात्यायन की पूजा की और दशमी को महिषासुर का वध किया। मां कात्यायनी अद्भुत फल देने वाली हैं। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिंदी-यमुना के तट पर उनकी पूजा की थी। वह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजनीय हैं।

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत उज्ज्वल और दीप्तिमान है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का ऊपर का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है। ऊपर वाले बाएं हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना से मनुष्य अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों को आसानी से प्राप्त कर सकता है। वह इस लोक में स्थित होते हुए भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

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