काल भैरव अष्टमी व्रत कथा | Kaal Bhairav Ashtami Vrat Katha PDF

नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आप सभी के लिए काल भैरव व्रत कथा / Kaal Bhairav Ashtami Vrat Katha PDF  लेकर आए हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान काल भैरव जी को समर्पित है। इन्हें भगवान शिव का पांचवा अवतार माना जाता है इसीलिए भैरव अष्टमी के दिन काल भैरव जी की पूजा की जाती है।

जो भी व्यक्ति इस दिन काल भैरव जी की पूजा करता है वह भय, क्रोध और अपने आस-पास मौजूद सभी बुराइयों से छुटकारा पा लेता है। यह व्रत काल अष्टमी की कथा के बिना पूर्ण नहीं हो सकता इसीलिए यदि आप भगवान काल भैरव जी का व्रत कर रहे हैं तो इस पोस्ट में माध्यम से आप Kalashtami Vrat ki katha को आसानी से पढ़ सकते हैं। जिससे आपके परिवार पर सदैव भगवान काल भैरव जी का आशीर्वाद बना रहेगा। कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड करने के लिए पोस्ट के लास्ट में जाकर डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करें।

काल भैरव अष्टमी व्रत कथा | Kaal Bhairav Ashtami Vrat Katha PDF – सारांश

शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी सुमेरु पर्वत पर ध्यान कर रहे थे। तभी देवता उनके पास आए और हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया। इसके बाद वे पूछने लगे कि इस संसार में अविनाशी तत्व क्या है। जिस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मुझसे बड़ा कोई नहीं है, संसार की उत्पत्ति मुझसे ही हुई है। संसार का प्रारंभ और अंत मेरे ही कारण होता है। ब्रह्मा जी के ऐसे वचन सुनकर वहां बैठे विष्णु जी को बहुत बुरा लगा। तब उन्होंने ब्रह्मा जी को समझाया कि आपको इस प्रकार अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि आप मेरी ही आज्ञा से सृष्टि के रचयिता हैं।

इसके बाद दोनों ने खुद को एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने के लिए वेदों का पाठ किया। जिसके बाद उन्होंने चारों वेदों से उनकी श्रेष्ठता के बारे में पूछा, तब ऋग्वेद ने भगवान शिव का पाठ करते हुए कहा कि हे ब्रह्मन्! हे श्री हरि! जिनमें यह समस्त पृथ्वी निवास करती है, वे भगवान शिव ही हैं। तब यजुर्वेद ने कहा कि वेदों की प्रामाणिकता भी उन परमपिता परमेश्वर शिव की कृपा से ही सिद्ध होती है। उसके बाद सामवेद ने कहा कि जो समस्त संसार के लोगों को गुमराह करते हैं और जिनके तेज से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे त्र्यंबक महादेव जी हैं।

वेदों की बातें सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि हे वेदों, तुम्हारी बातें तो तुम्हारी अज्ञानता को ही दर्शाती हैं। भगवान शिव हमेशा शरीर पर भस्म धारण करते हैं। उनके सिर पर जटाएं हैं और गले में रुद्राक्ष है। वे सर्प भी धारण करते हैं। शिव को परम तत्व कैसे कहा जा सकता है? उन्हें परम ब्रह्म कैसे माना जा सकता है? ब्रह्मा जी और श्री हरि विष्णु के ये वचन सुनकर मूर्त और अमूर्त रूप में सर्वत्र विद्यमान ओंकार ने कहा कि भगवान शिव ही शक्तिवान हैं। वे ही परम परमेश्वर हैं। और वे ही सबका कल्याण करने वाले हैं। वे महान लीलाधारी हैं और इस संसार में सब कुछ उनकी आज्ञा से ही होता है। लेकिन इसके बाद भी उनका विवाद समाप्त नहीं हुआ और लड़ाई बढ़ती ही चली गई।

ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच विवाद समाप्त नहीं हो रहा था। तभी उनके बीच एक बहुत बड़ा प्रकाश प्रकट हुआ। जिस अग्नि का न तो कोई आदि था और न ही कोई अंत, उसने ब्रह्मा जी के पांचवें मुख को जलाना शुरू कर दिया। तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए। उसके बाद भगवान श्री ब्रह्मा जी ने भगवान शिव जी से कहा कि आप मेरी शरण में आजाइए मैं आपकी रक्षा कर लूंगा। आप मेरे ही सिर से प्रकट हुए हैं और आपने अभी रोना शुरू कर दिया। इसी वजह से मैंने आपका नाम रुद्र रख दिया है। ब्रह्मा जी की बातें सुनकर शिव जी क्रोधित हो गए और उनसे उनके भयंकर रूप काल भैरव का जन्म हुआ।

काल भैरव ने अहंकारी ब्रह्म देव का जलता हुआ सिर काट दिया। इससे उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। तब भगवान शिव ने उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने का सुझाव दिया। फिर वे वहां से तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। धरती पर सभी तीर्थों के दर्शन करने के बाद काल भैरव शिव की नगरी काशी पहुंचे। वहां उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।

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