ज्येष्ठ अमावस्या व्रत कथा | Jyestha Amavasya Vrat Katha PDF in Hindi

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप ज्येष्ठ अमावस्या व्रत कथा / Jyestha Amavasya Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत अमावस्या का बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है। कि इस दिन भगवान शनि देव जी का जन्म हुआ था इसी वजह से इस दिन को शनि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है ज्येष्ठ अमावस्या वाले दिन पवित्र नदियों में स्नान का प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति इस दिन दान करता है तो उस दान का बहुत अधिक महत्व रहता है।

अमावस्या के दिन ही पितरों की तृप्ति के लिए पिंडदान किया जाता है यदि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना कर रहा है तो उसके लिए अमावस्या का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस व्रत को करने से आंतरिक रूप से शांति प्राप्त होती है तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां से आप बिना किसी परेशानी के ज्येष्ठ अमावस्या की कहानी पढ़ सकते हैं अगर आप चाहें तो इसकी पीडीएफ नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं।

 

ज्येष्ठ अमावस्या व्रत कथा | Jyestha Amavasya Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश

PDF Name ज्येष्ठ अमावस्या व्रत कथा | Jyestha Amavasya Vrat Katha PDF in Hindi
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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ज्येष्ठ अमावस्या की कथा | Jyestha Amavasya Ki Katha

एक प्राचीन कथा के अनुसार जब महर्षि दधीचि की मृत्यु हो गई थी और उनकी मृत्यु के पश्चात पिंडदान किया जा रहा था तो उनकी विधवा पत्नी उनका वियोग सहन नहीं कर सकी और अपने 3 साल के बच्चे को पीपल के पेड़ के पास छोड़कर खुद सती हो जाती है। कुछ समय के पश्चात भूख प्यास की वजह से बच्चा पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगता है और भूख की वजह से वह पीपल के पेड़ के नीचे पड़े हुए फल को खा लेता है और उस पेड़ के फल को खाते-खाते वह बड़ा होने लगा।

कुछ समय पश्चात महर्षि नारद मुनि वहां से गुजर रहे थे और उन्होंने उस बालक को वहां देख कर उस बालक से उसका परिचय पूछा बालक ने महर्षि नारद मुनि के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मैं खुद नहीं जानता कि मैं कौन हूं। कुछ समय बच्चे को ध्यान से देखने के पश्चात महर्षि नारद मुनि जी ने बताया तुम पुत्र हो महर्षि दधीचि के।

और उन्हीं की अस्थियों का वज्र बनाने के बाद देवताओं ने असुरों पर जीत हासिल की मुनि जी ने बताया की उसके पिता की मृत्यु 30 साल की उम्र में ही हो गई थी जब बालक ने मुनि जी से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा तो महर्षि नारद मुनि ने बताया कि उनके पिता पर शनि देव जी की महादशा थी और यह बात कहने के पश्चात महर्षि जी ने बालक का नाम पिप्लाद रख दिया और उसे अपने अंतर्गत शिक्षण देना शुरू कर दिया।

कुछ समय के बाद जब बच्चा बड़ा हुआ तो उसने ब्रह्मा विष्णु जी की घोर तपस्या की ब्रह्मा और विष्णु जी की घोर तपस्या करने के पश्चात पिप्पलाद की तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा पिप्पलाद ने उसके देखने मात्र से जला देने की शक्ति मांगी जैसे ही उसको यह शक्ति प्राप्त हुई तो उसने शनिदेव जी का आह्वान किया और जैसे ही शनिदेव उसके सामने प्रकट होते हैं वह अपनी आंखों के द्वारा शनिदेव जी को जलाना प्रारंभ कर देता है शनि देव जी का शरीर जलने लगता है जब सभी देवी देवताओं ने शनिदेव जी को जलते हुए देखा तो सभी ने शनिदेव जी को बचाने का प्रयत्न किया परंतु सभी असफल रहे।

उसके बाद देवताओं ने जब ब्रह्मा जी से प्रार्थना की तो ब्रह्मा जी स्वयं पिप्पलाद के सामने आए और शनि देव को छोड़ने के बदले में उससे दो वरदान मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने पहले वरदान में मांगा कि किसी भी 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की कुंडली में शनि देव का प्रभाव ना रहे कोई भी बच्चा शनिदेव की महादशा के कारण अनाथ ना हो क्योंकि पिप्पलाद की कुंडली में भी शनि की दशा थी इसलिए पिप्पलाद बचपन में ही अनाथ हो गया था।

उसने दूसरे वरदान में मांगा की जो भी व्यक्ति सूर्योदय से पहले अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष को अधैर्य देगा उस व्यक्ति पर शनि देव का कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए ब्रह्मा जी ने यह दोनों वरदान पिप्पलाद को प्रदान किये और इसके पश्चात उसने शनिदेव जी को छोड़ दिया उसी दिन से ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पीपल की पूजा का प्रावधान है और इसकी पूजा करने से संपूर्ण सुखों की प्राप्ति होती है।

 

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