जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप जितिया व्रत कथा / Jitiya Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। इस व्रत को एक अन्य नाम जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम-बंगाल अन्य भी कई राज्यों में अश्विनी महीने में कृष्ण पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक 3 दिनों के लिए मनाया जाता है। यह व्रत संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस व्रत में पूरे दिन निर्जला अर्थात बिना पानी के रहना पड़ता है।

इस व्रत को रखने से संतान को सभी सुखों की प्राप्ति होती है और अपने जीवन में कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता। जो भी इस व्रत को सच्चे दिल से रखता है उसके परिवार पर सदैव भगवान की कृपा बनी रहती है और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। आप इस पोस्ट में जीवित्पुत्रिका की कथा / Jivitputrika Ki Katha को बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।

जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha PDF
Pages 1
Language Hindi
Our Website pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
Source pdfinbox.com
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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा | Jivitputrika Vrat Katha

इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व एक बुद्धिमान राजा थे। जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने राज्य की सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने भाइयों को दे दीं और अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल में चले गए। एक दिन जंगल में घूमते हुए उसकी नजर विलाप करती हुई एक बुढ़िया पर पड़ती है।

उसने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। इस पर उसने उसे बताया कि वह साँपों के परिवार (नागवंशी) से है और उसका एक ही बेटा है। पक्षीराज गरुड़ को प्रतिदिन एक साँप शपथ के रूप में अर्पित किया जाता था और उस दिन उनके पुत्र की बारी थी।

उनकी समस्या सुनने के बाद जीमूतवाहन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित वापस ला देंगे। फिर वह गरुड़ के लिए चारा बनने का विचार करते हुए स्वयं चट्टान पर लेट जाता है। तभी गरुड़ आते हैं और लाल कपड़े से ढके जीमूतवाहन को अपनी उंगलियों से पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाते हैं।

उसे आश्चर्य होता है कि जिस व्यक्ति को उसने पकड़ा है वह प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है। फिर वह जीमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है। तब गरुड़ जीमूतवाहन की वीरता और दानशीलता से प्रसन्न होकर नागों से और बलि न लेने का वचन देते हैं। मान्यता है कि तभी से संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए जितिया व्रत मनाया जाता है।

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