नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप हरतालिका तीज व्रत कथा / Hartalika Teej Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है। इस तीज को सबसे बड़ी तीज माना जाता है हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की मुख्य रूप से पूजा की जाती है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं और अविवाहित कन्याएं दोनों व्रत रख सकती है। परंतु जो भी एक बार इस व्रत को रख लेता है उसे जीवन भर इस व्रत को रखना चाहिए।
यदि आप अपने जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना कर रहे हैं तो यह व्रत आपको अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत को रखने से सभी सुहागन महिलाओं के पति की आयु में वृद्धि होती है। इस व्रत को करवा चौथ के सामान फल देने वाला माना जाता है। यदि इस व्रत को पूर्ण आस्था और विधि विधान से किया जाए तो भगवान शिव की कृपा निश्चित ही होती है। आप इस पोस्ट के माध्यम से हरतालिका व्रत कथा / Hartalika Teej Vrat Katha को पढ़ सकते हैं। कथा की पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए पोस्ट के लास्ट में दिख रहे डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करें ।
हरतालिका तीज व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat Katha PDF – सारांश
PDF Name | हरतालिका तीज व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat Katha PDF |
Pages | 3 |
Language | Hindi |
Our Website | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
Source / Credits | pdfinbox.com |
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हरतालिका तीज व्रत कथा pdf download
प्राचीन कथा के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती को उनके पुनर्जन्म की याद दिलाने के लिए हरतालिका तीज व्रत की कथा सुनाई। भगवान शंकर कहते हैं हे पार्वती- तुमने मुझे वर के रूप में पाने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या की। हे पार्वती, तुमने मुझे पाने के लिए अन्न, जल त्याग दिया और पत्ते खा लिये।
तुमने सर्दी, गर्मी और बरसात में बहुत कष्ट सहे हैं। हे पार्वती, तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे और उसी दौरान नारद जी तुम्हारे घर आये। और कहो कि मैं भगवान विष्णु के कहने पर आया हूँ। भगवान विष्णु तुम्हारी पुत्री पर प्रसन्न हैं और उससे विवाह करना चाहते हैं, इसलिये मैं अपना अभिप्राय बता रहा हूँ।
तभी माता पार्वती के पिता यानि पर्वतराज नारदजी प्रसन्न हो गए और आपका विवाह भगवान विष्णु से करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद नारद जी ने यह शुभ समाचार भगवान विष्णु को सुनाया। लेकिन जब तुम्हें पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ क्योंकि तुमने मुझे दिल से अपना पति मान लिया था. आपने अपने मन की बात अपने मित्र को बताई।
इसलिये तुम्हारे मित्र ने तुम्हें घने जंगल में छिपा दिया। आप वहां तपस्या करने लगे जहां आपके पिता नहीं पहुंच सके। तुम्हारे गायब हो जाने से पिता जी चिंतित हो गये और सोचने लगे कि यदि इसी बीच विष्णु जी बारात लेकर आ गये तो क्या होगा। फिर आगे शिव ने पार्वती से कहा- तुम्हारे पिता ने तुम्हें ढूंढने के लिए बहुत प्रयत्न किए उन्होंने धरती का प्रत्येक कोना छान मारा परंतु तुम कहीं नहीं मिली क्योंकि तुम एक एक गुफा में रेत से शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना कर रही थी।
अब मैं खुश हूं और मैंने अपनी इच्छा पूरी करने का वादा किया है. आपके पिता खोजते हुए गुफा तक पहुंचे लेकिन आपने अपने पिता को बताया कि आपने अपना अधिकांश जीवन भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या में बिताया है। आज तपस्या सफल हुई, शिव ने मुझे चुना है। और अब मैं एक शर्त पर तुम्हारे साथ घर चलूँगा। जब आप मेरा विवाह शिव के साथ कराने को सहमत होंगे।
माता पार्वती के पिता यानि पर्वतराज पार्वती का विवाह शिव से कराने के लिए राजी हो गये। इसके बाद विधि-विधान से हमारी शादी करा दी गई है। पार्वती, तुम्हारे कठोर व्रत के फलस्वरूप हमारा विवाह हुआ है। जो स्त्री निष्ठापूर्वक इस व्रत को करती है, उसे मैं मनवांछित फल देता हूं। उसे भी आपकी तरह अखंड सुहाग का वरदान मिले।
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