गुरु प्रदोष व्रत कथा | Guru Pardosh Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गुरु प्रदोष व्रत कथा / Guru Pardosh Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली त्रयोदशी तिथि को गुरु प्रदोष व्रत जाता है प्रदोष व्रत मुख्य रूप से प्रदोष काल में लगता है और इस समय अवधि के दौरान पूजा करना बहुत ही अधिक शुभ माना जाता है। और ऐसा भी कहा जाता है कि प्रदोष काल वह समय है जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर डमरू बजाते हुए बहुत ही प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं।

इस समय में प्रदोष व्रत का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है इस वर्ष 2023 में गुरु प्रदोष व्रत 1 जून को है। यदि कोई भी व्यक्ति किसी भी काम में निरंतर असफल हो रहा है तो उसे यह व्रत अवश्य ही रखना चाहिए। क्योंकि इस व्रत को हर काम में सफलता दिलाने वाले व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस लेख के माध्यम से आप गुरु प्रदोष कथा को बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं साथ ही नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में भी प्राप्त कर सकते हैं।

 

गुरु प्रदोष व्रत कथा | Guru Pardosh Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name गुरु प्रदोष व्रत कथा | Guru Pardosh Vrat Katha PDF
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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गुरु प्रदोष की कथा | Guru Pardosh Ki Katha

एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में भयंकर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को परास्त कर उसका विनाश कर दिया। यह देखकर वृत्तासुर बहुत क्रोधित हुआ और स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गया। राक्षसी माया के कारण उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता डर गए और गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति महाराज कहते हैं कि मैं तुम्हें वृत्तासुर का संपूर्ण परिचय देता हूं वृत्तासुर एक बड़ा तपस्वी है।

उन्होंने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। पूर्वकाल में वे चित्ररथ नाम के राजा थे। एक बार वे अपने विमान से कैलाश पर्वत पर गए। वहां माता पार्वती को शिवजी के बायीं ओर बैठे देखकर उन्होंने उपहास करते हुए कहा- ‘हे प्रभु! माया में फंसकर हम स्त्री के प्रभाव में रहते हैं, परन्तु देवलोक में ऐसा नहीं दिखाई देता कि कोई स्त्री सभा में आलिंगन करके बैठती है। मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अलग है।

मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष को लिया है, फिर भी आप साधारण व्यक्ति की तरह मेरा मजाक उड़ाते हैं!’ माता पार्वती ने क्रोधित होकर चित्ररथ को सम्बोधित किया- ‘अरे दुष्ट! तुमने मेरा और सर्वव्यापी महेश्वर का भी उपहास किया है, इसलिए मैं तुम्हें सिखाऊंगा कि तुम ऐसे संतों का फिर उपहास करने का साहस नहीं करोगे – अब तुम राक्षस के रूप में विमान से नीचे गिरते हो, मैं तुम्हें शाप देता हूं। ‘जगदंबा भवानी के चित्ररथ को मिला श्राप के कारण राक्षस रूप और त्वष्टा नामक ऋषि की घोर तपस्या से उत्पन्न होकर वृतासुर बन गया।

गुरुदेव बृहस्पति ने आगे कहा- ‘वृत्तासुर बचपन से ही शिवभक्त रहा है, अत: हे इन्द्र! आप बृहस्पति प्रदोष व्रत करके भगवान शंकर को प्रसन्न करें।’ देवराज ने गुरुदेव की बात मानी और बृहस्पति प्रदोष व्रत रखा। गुरु प्रदोष व्रत की महिमा से शीघ्र ही इंद्र ने वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति व्याप्त हो गई। प्रदोष व्रत को सच्चे दिल से करने से सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती है।
बोलिए हर हर महादेव

 

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