बछ बारस व्रत कथा | Bach Dua Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप बछ बारस व्रत कथा / Bach Dua Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। जन्माष्टमी के पश्चात भाद्रपद द्वादशी को बछ बारस का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सभी विवाहित महिलाएं व्रत रख सकती हैं जो भी महिला इस दिन व्रत रखती है। उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। इस व्रत के दिन गाय के बछड़े की पूजा की जाती है।

यदि गाय का बछड़ा नहीं मिल रहा है तो बछ बारस की पूजा के लिए मिट्टी के द्वारा गाय का बछड़ा बनाकर उसकी भी पूजा कर सकते हैं। ऐसा करने से आप पर भगवान की कृपा बनी रहेगी और जीवन में किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। आप इस पोस्ट में बछ बारस व्रत की कथा / Bach Baras Vrat Katha को बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके बच बारस कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

बछ बारस व्रत कथा | Bach Dua Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name बछ बारस व्रत कथा | Bach Dua Vrat Katha PDF
Pages 1
Language Hindi
Our Website pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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बज बारस की कथा | Baj Baras ki Katha

प्राचीन समय की कहानी है कि एक राजा ने अपने राज्य में पानी के लिए एक तालाब बनवाया। तालाब के चारों ओर दीवार पक्की बनाई गई ताकि पानी बाहर जाकर जमा न हो सके। लेकिन वह तालाब पानी से नहीं भरा था। तब राजा ने एक महान ज्योतिषी को बुलाया और इसका कारण पूछा। राजा की बात सुनकर ज्योतिषी ने कहा, हे राजन, यदि आप अपने पोते को यज्ञ में बलि चढ़ाएंगे तो यह तालाब पानी से भर जाएगा।

इसके बाद राजा ने यज्ञ किया और उसमें अपने पोते की बलि दे दी। और जब बारिश हुई तो तालाब पूरी तरह पानी से भर गया। राजा ने तालाब को जल से भरवाकर उसकी पूजा करवाई। पीछे से राजा की दासी ने गाय के बछड़े का साग बनाया। जब राजा पूजा करके लौटे तो उन्होंने दासी से पूछा कि गाय का बछड़ा कहां है। दासी बोली, “महाराज, मैंने उस बछड़े की सब्जी बनाई है।”

दासी की बात सुनकर राजा ने पूछा, हे पापिनी, तूने यह क्या किया है? और उस मांस और हड्डी को जमीन में गाड़ दिया। जब गाय वापस आई तो उसने अपने बछड़े को खोजा और अपने सींगों से उसी स्थान पर खुदाई करने लगी। जहां बछड़े के मांस का मटका गाड़ा गया था। खुदाई करते समय गाय का सींग मटके से टकराया तो गाय ने मटके को बाहर निकाल लिया। उसने देखा तो उस घड़े में गाय का बछड़ा और राजा का पोता दोनों जीवित पाये गये। उस दिन से इसे ओक/बाली/वत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाने लगा।

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