नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप अपरा एकादशी व्रत कथा / Apara Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत जेठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है वर्ष 2023 में अपरा एकादशी 15 मई को है।
अपरा एकादशी को एक अन्य नाम अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है यह नाम इसको इसलिए दिया गया क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह एकादशी अपार धन देने वाली है यदि कोई भी व्यक्ति इस दिन पूर्ण विधि-विधान के साथ सच्चे दिल से भगवान विष्णु की पूजा करता है तो उस पर भगवान विष्णु की अपार कृपा होती है और उसके जीवन में कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं होती इस एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है आज इस लेख के माध्यम से अचला एकादशी व्रत कथा बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं साथ ही नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके पीडीएफ फॉर्मेट में प्राप्त कर सकते हैं हम अपना प्रयास करते हैं कि आपको सही व सटीक जानकारी प्रदान की जा सके।
अपरा एकादशी व्रत कथा | Apara Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi – सारांश
PDF Name | अपरा एकादशी व्रत कथा | Apara Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi |
Pages | 1 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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अपरा एकादशी व्रत कथा PDF | Apra Ekadashi vrat ki katha
इस एकादशी व्रत को अन्य भी कई नामो से जाना जाता है जैसे – अचला और अपरा। हिन्दू के पुराणों का अनुसार कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह अपार धन देने वाली होती है।
ये कथा बहुत ही प्रचलित है प्राचीन समय में एक महीध्वज नाम का एक राजा रहता था। उसके एक छोटा भाई था जिसका नाम वज्रध्वज था वह बहुत ही अधर्मी, क्रूर, और अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई महीध्वज से बहुत नफरत करता था। उस पापी ने एक ही दिन और रात में अपने बड़े भाई की हत्या कर दी।
और उसके शव को पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ देता है जब राजा की मौत बिना काल के हुई तो वह राजा उसी पेड़ पुर बहुत के रूप में रहने लगा और उस पेड़ पुर रहते – रहते बहुत सारे उत्पात करने लगा। ।
एक दिन अचानक धौम्य नाम के एक ऋषि उद्र के पास से गुजरे। उसने उसकी घटना देखी और जानी। अपनी तपस्या के बल से वह इस उत्पात का कारण समझ गया। प्रसन्न होकर मुनि ने उस भूत को पीपल के पेड़ पर चढ़ा दिया और परलोक का ज्ञान उपदेश दिया।
दयालु ऋषि ने स्वयं राजा की प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से जगाने के लिए अपने पुण्य भूत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया। उन्होंने ऋषि को धन्यवाद दिया, दिव्य शरीर धारण कर पुष्पक विमान में खड़े होकर आकाश में चले गए। हे राजन! अपरा एकादशी की यह कथा मैं जनहितार्थ कह रहा हूँ। जो इसे पढ़ता या सुनता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
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