हेलो दोस्तों, अगर आप सूर्य अष्टकम / Surya Ashtakam PDF in Sanskrit ढूंढ कर रहे हैं तो आप सही पेज पर हैं। यह स्तोत्रम मुख्य रूप से भगवान सूर्य देव जी को समर्पित है जो भी सच्चे दिल से उसका निरंतर पाठ करता है उसके जीवन के संकट दूर हो जाते है। उसे अपने जीवन में किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता सूर्य देव जी हिंदू धर्म में ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। जिस भी व्यक्ति को नेत्र संबंधित कोई भी परेशानी है तो उसके लिए यह विशेष रूप से लाभकारी है। जिस प्रकार सूर्य देव जी हमेशा ऊर्जावान व तेजोमय रहते हैं ठीक उसी प्रकार जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से सूर्य देव जी की पूजा करता है उसके मस्तक पर भी एक ऊर्जा रूपी तेज होता है।
सूर्य अष्टकम को मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में लिखा गया है परंतु आज के समय में लोगों की आवश्यकता को देखते हुए इसे बहुत सी भाषाओं में अनुवादित किया गया है। यहां से आप इसे संस्कृत में आसानी से पढ़कर इसका जाप कर सकते हैं और अगर आप चाहें तो निरंतर सूर्य देव जी की पूजा करने के लिए इसकी पीडीएफ डाउनलोड करें जिसको आप नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके श्री सूर्य अष्टकम PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
सूर्य अष्टकम | Surya Ashtakam PDF in Sanskrit – संक्षेपः
PDF Name | सूर्य अष्टकम | Surya Ashtakam PDF in Sanskrit |
Pages | 2 |
Language | Sanskrit |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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Surya Ashtakam Lyrics In Sanskrit
|| सूर्य अष्टकम ||
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥
त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥
बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च ।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥
तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥9॥
अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥10॥
स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥11॥
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