नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आप सभी के लिए स्कंद षष्ठी व्रत कथा / Skanda Sashti Vrat Katha PDF लेकर आए हैं। पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 5 जनवरी रविवार के दिन रखा जाएगा। इस व्रत में भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर रक्षा का वध किया था और तीनों लोगों को तारकासुर के द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से मुक्त किया था। इसीलिए इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस व्रत को रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन से रखकर भगवान कार्तिकेय की आराधना करता है उसे अमोघ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को रखने से आध्यात्मिक शांति की भी प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि, सफलता मिलती है। आप इस पोस्ट के माध्यम से Skanda Sashti Katha को बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं। कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड करने के लिए पोस्ट के लास्ट में दिख रहे डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करें।
स्कंद षष्ठी व्रत कथा | Skanda Sashti Vrat Katha PDF – सारांश
PDF Name | स्कंद षष्ठी व्रत कथा / Skanda Sashti Vrat Katha PDF |
Pages | 1 |
Language | Hindi |
Our Website | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
Source | pdfinbox.com |
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स्कंद षष्ठी की व्रत कथा / Skanda Sashti Ki Vrat Katha
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के भस्म हो जाने के बाद भगवान शिव वैरागी हो गए और तपस्या में लीन हो गए, जिससे सृष्टि शक्तिहीन हो गई। इसके बाद राक्षस तारकासुर ने देवलोक में अपना आतंक फैला दिया और देवता पराजित हो गए। धरती हो या स्वर्ग, हर जगह अन्याय और अनैतिकता का बोलबाला हो गया।
इससे परेशान होकर देवताओं ने तारकासुर के अंत के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। इस पर ब्रह्माजी ने बताया कि शिव का पुत्र ही तारकासुर का अंत कर पाएगा। तब सभी देवताओं और इंद्र ने शिव को ध्यान से जगाने का प्रयास किया और इसके लिए उन्होंने भगवान कामदेव की भी मदद ली। कामदेव ने अपने बाण से शिव पर पुष्प फेंके, ताकि उनके मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम की भावना विकसित हो। इससे शिव की तपस्या टूट जाती है और वे क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं। इससे कामदेव जल जाते हैं।
तपस्या भंग होने के बाद वे खुद को माता पार्वती की ओर आकर्षित पाते हैं। जब इंद्र और अन्य देवता भगवान शिव को अपनी समस्या बताते हैं। उसके बाद भगवान शिव माता पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेते हैं, माता पार्वती के द्वारा की गई तपस्या के बाद शुभ मुहूर्त को देखते हुए भगवान शिव और पार्वती का विवाह किया जाता है। और उसके बाद कार्तिकेय का जन्म होता हैऔर फिर कार्तिकेय तारकासुर का वध करके सभी देवताओं को उनका स्थान फिर से वापस दिलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि कार्तिकेय जा जन्म षष्ठी तिथि के दिन हुआ था इसलिए षष्ठी तिथि दिन कार्तिकेय जी की पूजा का प्रावधान हैं।
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