गुरु पूर्णिमा व्रत कथा | Guru Purnima Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गुरु पूर्णिमा व्रत कथा / Guru Purnima Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। गुरु पूर्णिमा को हिंदू धर्म के अंतर्गत बहुत ही अधिक महत्व प्राप्त है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था भारत देश में कई जगह पर जगह पर इसे आषाढ़ी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 2023 में गुरु पूर्णिमा का व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा। यदि हम हिंदू धर्म के अंतर्गत दर्जे की बात करते हैं तो गुरुओं को देवताओं से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त है।

गुरु पूर्णिमा के दिन हमें महर्षि वेदव्यास जी की की पूजा को बहुत ही शुभ माना जाता है। यदि आप अपने जीवन में किसी भी समस्या का सामना कर रहे हैं तो गुरुओं के आशीर्वाद मात्र से समस्या का निवारण हो जाता है। आप इस पोस्ट के माध्यम से गुरु पूर्णिमा 2023 व्रत कथा को पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।

 

गुरु पूर्णिमा व्रत कथा | Guru Purnima Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Name गुरु पूर्णिमा व्रत कथा | Guru Purnima Vrat Katha PDF
Pages 2
Language Hindi
Source pdfinbox.com
Category Religion & Spirituality
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गुरु पूर्णिमा की कथा | Guru Purnima Ki Katha

प्राचीन कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का ही अंश माना जाता है। महर्षि वेदव्यास जी की माता का नाम सत्यवती था। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर था। महर्षि वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में बहुत ही रुचि थी।

एक बार इन्होंने प्रभु के दर्शन के लिए माता-पिता के सामने इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने के लिए अनुमति मांगी। जब उनकी माता ने यह बात सुनी तो उन्होंने वेदव्यास जी को वन में जाने से मना कर दिया। इसके बाद भी वेदव्यास जी वन में जाने के लिए हठ करने लगे। वेदव्यास जी की हठ को देखकर उनकी माता सत्यवती ने उन्हें वन में जाने के लिए आज्ञा देनी पड़ी।

इसके बाद जब वेदव्यास जी वन की तरफ जाने लगे तो उनकी माता ने उनसे कहा कि जब भी कभी तुम्हें घर की याद आए तो तुम बिना हिचके घर आ जाना। माता के इन वचनों को सुनने के बाद वेदव्यास जी दोबारा से वन की ओर चल दिए। वन में पहुंचकर वेदव्यास जी कठोर तपस्या करने लगे। निरंतर भगवान का ध्यान लगाने और कठोर तपस्या की वजह से महर्षि वेदव्यास जी को संस्कृत भाषा का ज्ञान हो गया।

संस्कृत भाषा के ज्ञान के पश्चात इन्होंने वेद, अठारह महापुराणों और ब्रह्मा सूत्र की रचना की। आज के लोगों को वेदों के ज्ञान का श्रेय महर्षि वेदव्यास जी को जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास जी को प्रथम गुरु के रूप में याद किया जाता है। महर्षि वेदव्यास जी को अमर रहने का वरदान प्राप्त है। और ऐसा माना जाता है कि आज भी वेदव्यास जी किसी न किसी रूप में हम सबके बीच में उपस्थित है।

 

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