नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप कोकिला व्रत कथा / Kokila Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म के अंतर्गत कोकिला व्रत को बहुत ही अधिक पवित्र और फलदाई माना जाता है। यह व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किया जाता है। जब भगवान शिव ने माता पार्वती को श्राप दिया था तो उसके पश्चात भगवान शिव को अपने पति के रूप में पुनः प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक माता सती ने कोयल के रूप में तप किया था।
इस व्रत को जो भी कन्या सच्चे दिल से करती है और आस्था के साथ भगवान की पूजा करती है उसे सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है साथ ही इस व्रत को रखने से जीवन में खुशहाली और शांति की प्राप्ति होती है। आप इस पोस्ट के माध्यम से कोकिला व्रत कथा 2023 को पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं।
कोकिला व्रत कथा | Kokila Vrat Katha PDF – सारांश
PDF Name | कोकिला व्रत कथा | Kokila Vrat Katha PDF |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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कोकिला व्रत की कथा | Kokila Ki Vrat Katha PDF
प्राचीन कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष के घर देवी सती जी का जन्म होता है। दक्ष भगवान विष्णु के भक्त थे और यह भगवान शिव से द्वेष रखते थे। जब भी देवी सती के विवाह की बात होती थी तो राजा दक्ष कभी भी नहीं चाहते थे कि सती का संबंध भगवान शिव से जुड़े। परंतु राजा दक्ष के मना करने पर भी देवी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया।
अपनी पुत्री सती के इस कार्य के कारण दक्ष इतनी क्रोधित हुए कि उन्होंने देवी सती से अपने सभी संबंध तोड़ लिए। इसका बदला लेने हेतु राजा दक्ष कुछ दिनों पश्चात एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं। उसमें राजा दक्ष सभी देवी देवताओं को निमंत्रण देते हैं परंतु भगवान शिव का अपमान करने के लिए भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं करते।
जब देवी सती को यह बात पता चलती है तो वे अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो जाती है। भगवान शिव उन्हें वहां जाने से मना करते हैं परंतु देवी सती जाने के लिए जिद करती है। देवी सती की जिद की वजह से भगवान शिव उन्हें जाने देते हैं।
जब देवी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंचती है तो वह देखती है कि भगवान शिव का स्थान नहीं है और इस बारे में वे अपने पिता दक्ष से पूछती है। परंतु उनके पिता दक्ष भगवान शिव और बेटी सती का अपमान करते हैं जब दक्ष भगवान शिव का अपमान करते हैं। तो सती सहन नहीं कर पाती और उस यज्ञ के हवन कुंड में अपनी देह को त्याग देती है।
जैसे ही यह बात भगवान शिव को पता चलती है तो दक्ष और उसकी यज्ञ को नष्ट कर देते हैं। भगवान शिव देवी सती के वियोग को सहन नहीं कर पाते और उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर प्राणों को त्यागने की वजह से उन्हें हजार वर्ष तक कोयल बनने का श्राप दे देते हैं। श्राप के पश्चात देवी सती कोयल बनकर हजारों वर्षों तक भगवान शिव को दोबारा पाने के लिए तपस्या करती हैं। और उनकी तपस्या के कारण उन्हें पार्वती के रूप में भगवान शिव की प्राप्ति होती है और उसी दिन से कोकिला व्रत की महत्वता स्थापित है।
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