नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप देवशयनी एकादशी व्रत कथा / Devshayani Ekadashi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। आषाढ़ के महीने में शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। चातुर्मास का आरंभ इसी एकादशी से माना जाता है इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह या कोई अन्य कार्य नहीं किया जाता। हिंदू धर्म की प्राचीन कथाओं के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और उसके बाद उसके 4 महीने के बाद उन्हें उठाया जाता है। इस समय की अंतराल को चातुर्मास कहा जाता है।
देव शयनी एकादशी को अन्य भी कई नामों से जाना जाता है जैसे पद्मनाभा, प्रबोधनी एकादशी इत्यादि जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखकर व्रत कथा का जाप करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। आप इस पोस्ट के माध्यम से देवयानी एकादशी 2023 की कथा/ Devshayani Ekadashi 2023 ki katha को संपूर्ण पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा | Devshayani Ekadashi Vrat Katha PDF -सारांश
PDF Name | देवशयनी एकादशी व्रत कथा | Devshayani Ekadashi Vrat Katha PDF |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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आषाढी एकादशी व्रत कथा | Ashadhi Ekadashi Vrat Katha PDF
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? युधिष्ठिर जी पूछते हैं कि हे केशव इस व्रत को किस विधि से करना चाहिए और इस व्रत के दिन किस देवता की पूजा की जाती है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जो कथा ब्रह्माजी ने नारदजी से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ।
एक बार देवर्षि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के बारे में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया- सतयुग में मान्धाता नाम का एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करता था। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। लेकिन भविष्य में क्या होगा ये कोई नहीं जानता। उस राजा को इस बात का ज्ञान था कि जल्दी ही उसके राज्य में एक बहुत भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण उसके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल ने चारों ओर हाहाकार मचा दिया। धार्मिक पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी आ गई है। जब संकट हो तो जीव की रुचि धर्म-कर्म में कहां रह जाती है। लोग राजा के पास गये और अपना दुखड़ा रोया।
राजा पहले से ही इस स्थिति से दुखी था। वे सोचने लगे कि मैंने कौन सा पाप किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? राजा और प्रजा दोनों बहुत ही परेशान थे तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए वे सभी राजा जंगल की ओर चल दिए।
वहां घूमते-घूमते एक दिन वह ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वाद देकर कुशल क्षेम के बारे में पूछा। फिर वन में घूमकर उनके आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।
तब राजा अपने दोनों हाथ जोड़कर ऋषि से कहते हैं कि हे महात्मन् मैं सभी प्रकार से धर्म का पालन कर रहा हूं उसके बाद भी मेरे राज्य पर अकाल पड़ रहा है ऐसा होने की वजह क्या है कृपया करके मुझे इसका समाधान बताएं।
यह सुनकर महर्षि अंगिरा बोले: हे राजन! यह सतयुग सभी युगों में सर्वश्रेष्ठ है। छोटे से पाप का भी कठोर दण्ड मिलता है।
इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। आपके राज्य में ब्राह्मण जाति के अतिरिक्त किसी भी अन्य जाति को तपस्या करने का अधिकार नहीं है और इसी वजह से आपके राज्य में अकाल पड़ रहा है और यह अकाल तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक आपके राज्य में यही होता रहेगा। उसके वध से ही अकाल की शांति संभव है।
लेकिन राजा का हृदय एक हत्यारे शूद्र तपस्वी को शांत करने के लिए तैयार नहीं था।
उसने कहा: हे भगवान, मैं उस निर्दोष को मार डालूं, यह मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपया कोई अन्य उपाय बताएं।
महर्षि अंगिरा यह सब सुनकर राजा से कहते हैं कि आपको आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखना चाहिए यदि आप इस व्रत को रखेंगे तो आपके राज्य में अवश्य ही वर्षा होगी। राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आये और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत के प्रभाव से उसके राज्य में मूसलाधार बारिश हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी की व्रत के महत्व को विशेष रूप से दर्शाया गया है जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे दिल से रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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