पशुपतिनाथ की आरती | Pashupatinath Ki Aarti PDF in Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए पशुपतिनाथ की आरती | Pashupatinath Ki Aarti PDF में प्रदान करने जा रहे हैं। भगवान शिव का एक नाम पशुपतिनाथ है जिसका अर्थ है भगवान शिव चारों दिशाओं में मौजूद है भगवान शिव जो कि त्रिकालदर्शी हैं जिन्हें और भी कई नामों से जाना जाता है। भगवान शिव की पूजा करने से जिंदगी के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। और एक शांति की अनुभूति होती है।

पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल में मौजूद है इसका निर्माण पशु प्रेक्ष राजा ने करवाया था यह निश्चित रूप से भगवान शिव को समर्पित है आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी को पशुपतिनाथ जी की आरती प्रदान करने जा रहे हैं क्या इसको बिना किसी कठिनाई के पढ़ सकते हैं साथ ही इसकी पीडीएफ नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं।

पशुपतिनाथ जी की आरती | PashupatiNath Ji Ki Aarti PDF – सारांश

PDF Name पशुपतिनाथ की आरती | Pashupatinath Ki Aarti PDF
Pages 3
Language Hindi
Category Religion & Spirituality
Source pdfinbox.com
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पशुपति व्रत की आरती | PashupatiNath Aarti PDF

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥ ॐ जय गंगाधर …

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने ।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने ॥ ॐ जय गंगाधर …

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌ ।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते॥ ॐ जय गंगाधर …

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥ ॐ जय गंगाधर …

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌ ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌ ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌ ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌ ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ ॐ जय गंगाधर …

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते ॥ ॐ जय गंगाधर …

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

॥ इति श्री पशुपति नाथ आरती संपूर्णम् ॥

॥जय शिव शंंभू , हर-हर महादेव॥

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