रोहिणी व्रत कथा | Rohini Vrat Katha PDF in Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट के माध्यम से आप रोहिणी व्रत कथा / Rohini Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। जैन समुदाय के लिए यह व्रत एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है यह व्रत मुख्य रूप से जैन समुदाय के लोगों के द्वारा रखा जाता है। इस व्रत को रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है इसी वजह से इसको रोहिणी व्रत के नाम से जाना जाता है। रोहिणी नक्षत्र जब समाप्त होता है तो रोहिणी व्रत मनाया जाता है। और उसके पश्चात मार्गशीर्ष नक्षत्र आता है। प्रत्येक वर्ष में 12 रोहिणी व्रत रहते हैं यह व्रत प्रत्येक महीने में एक बार आता है।

ऐसा माना जाता है कि यह व्रत लगातार 3,5 या 7 साल तक करना चाहिए। यह व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों के द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। जो भी इस व्रत को पूर्ण ध्यान आराधना से रखता है उसके पति की उम्र में वृद्धि होती है। आप रोहिणी व्रत की कथा / Rohini vrat ki katha को इस पोस्ट के द्वारा पढ़ सकते हैं। कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड करने के लिए पोस्ट के लास्ट में जाकर डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करें।

रोहिणी व्रत कथा | Rohini Vrat Katha PDF in Hindi – Summary

रोहिणी व्रत कथा 2024 | Rohini Vrat Katha 2024

कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नाम का एक नगर था। यहां राजा माधव अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ रहते थे। उनकी 8 संतानें थीं। इनमें से 7 पुत्र और 1 पुत्री थी जिसका नाम रोहिणी था। एक बार राजा ने निमित्जयानी से पूछा कि उनकी पुत्री का वर कौन होगा? तो उसने कहा कि आपकी पुत्री का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक से होगा। यह सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाल दी। दोनों का विवाह खुशी के माहौल में संपन्न हुआ। एक बार हस्तिनापुर नगरी के वन में एक मुनिराज आए।

राजा अपने प्रियजनों के साथ श्री चरण मुनिराज के दर्शन करने के लिए वहां आए। सभी ने उन्हें प्रणाम किया और धर्म की शिक्षा प्राप्त की। राजा ने मुनिराज से पूछा कि उनकी रानी इतनी शांत क्यों हैं? मुनिराज ने उत्तर दिया कि इस नगर में एक राजा थे जिनका नाम वस्तुपाल था। धनमित्र को हमेशा यह चिंता रहती थी कि उसका क्या होगा और उससे कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने अपनी पुत्री का विवाह अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण को धन का लालच देकर उससे कर दिया। परंतु उसकी दुर्गंध से परेशान होकर एक महीने में ही उसे छोड़ दिया। इसी दौरान घूमते-घूमते अमृतसेन मुनिराज नगर में आए। तब धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गा के साथ उनकी पूजा करने गए।

उन्होंने अपनी पुत्री के बारे में पूछा। तब उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के पास एक नगर है, जहां राजा भूपाल राज करते हैं। उनकी रानी का नाम सिंधुमती है। एक दिन राजा अपनी रानी के साथ वन क्रीड़ा कर रहे थे, तभी उन्हें मार्ग में मुनिराज दिखाई दिए। तब राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए भोजन की व्यवस्था करने को कहा। रानी ने राजा की आज्ञा का पालन किया परंतु क्रोधित होकर मुनिराज को करेला खिला दिया। इससे मुनिराज को बहुत कष्ट उठाना पड़ा बहुत कष्ट सहने के बाद वह पशु योनि में और फिर तुम्हारे घर दुर्गन्धा कन्या के रूप में जन्मी है।

यह सुनकर धनमित्र ने पूछा कि क्या ऐसा कोई अनुष्ठान या व्रत है, जिससे यह पाप दूर हो सके। तब मुनिराज ने कहा कि सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत करो। प्रत्येक मास में जिस दिन रोहिणी नक्षत्र आए, उस दिन चारों प्रकार के भोजन का त्याग करो। साथ ही श्री जिन चैत्यालय में जाकर 16 प्रहर धर्म ध्यान सहित बिताओ। इस प्रकार 5 वर्ष 5 माह तक यह व्रत करो। मुनिराज के कहे अनुसार दुर्गन्धा ने भक्तिपूर्वक व्रत किया और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में प्रथम देवी बनी।

इसके बाद वह अशोक की रानी बनी। तब अशोक ने अपने बारे में पूछा, तब मुनि ने बताया कि पूर्वजन्म में वह एक भील था और उसने एक मुनि को सताया था। इसी कारण वह मरकर नरक में गया। फिर वह अनेक बुरी योनियों में भटकता रहा। फिर उसका जन्म एक व्यापारी के घर हुआ, जिसका शरीर बहुत ही घिनौना था। फिर एक ऋषि की सलाह पर उन्होंने रोहिणी व्रत किया जिसके फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई और वे हस्तिनापुर के राजा बने। फिर उन्होंने रोहिणी से विवाह किया। तब से यह माना जाता है कि रोहिणी व्रत के प्रभाव से राजा अशोक और रानी रोहिणी ने स्वर्ग के सुख भोगे और मोक्ष प्राप्त किया। इसी प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करता है उसे सभी सुख प्राप्त होते हैं।

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