कोजागिरी व्रत कथा | Kojagiri Vrat Katha PDF

नमस्कार पाठकों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए कोजागिरी व्रत कथा / Kojagiri Vrat Katha PDF लेकर आए हैं। अश्विनी महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। तथा कुछ जगहों पर इस व्रत कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। कथा को पढ़ने से पूर्व चंद्रमा व भगवान विष्णु की पूजा का प्रावधान है।

ऐसा माना जाता है कि अश्विनी महीने की पूर्णिमा को माता लक्ष्मी जी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस दिन पूर्ण विधि विधान से माता लक्ष्मी की व्रत कथा को पढ़कर उनकी पूजा करता है। उस पर माता लक्ष्मी असीम कृपा बनाए रखती हैं। आप इस पोस्ट में बिना किसी परेशानी के शरद पूर्णिमा व्रत कथा / Sharad Purnima Vrat Katha पढ़ सकते हैं। साथ ही कथा को पीडीएफ डाउनलोड करने लिए डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करें।

कोजागिरी व्रत कथा | Kojagiri Vrat Katha PDF – सारांश

PDF Nameकोजागिरी व्रत कथा / Kojagiri Vrat Katha PDF
Pages1
LanguageHindi
Our Websitepdfinbox.com
CategoryReligion & Spirituality
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कोजागिरी पौर्णिमा व्रत कथा / Kojagiri Purnima Vrat Katha in Hindi

कोजागरी व्रत कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां थीं। दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी बेटी पूरा व्रत रखती थी और छोटी बेटी अधूरा व्रत रखती थी। अधूरे व्रत के कारण छोटी बेटी की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। छोटी बेटी ने अपनी यह व्यथा एक ब्राह्मण को बताई, तब उस ब्राह्मण ने उसे शरद पूर्णिमा की पूरी विधि बताई।

इसके बाद साहूकार की छोटी बेटी ने पूरे विधि-विधान से पूर्णिमा का व्रत रखा और इसके पुण्य से उसे संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन कुछ दिन बाद वह भी मर गया। उसने बालक को एक चौकी पर लिटाकर कपड़े से ढक दिया और फिर बड़ी बहन को बुलाकर घर ले आई और उसे वही चौकी बैठने को दे दी।

बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका लहंगा बालक को छू गया। लहंगे के छूते ही बालक रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे बदनाम करना चाहती थी। अगर मैं इस पर बैठती तो वह मर जाता। तब छोटी बहन ने कहा कि वह तो पहले ही मर चुका है। तेरे भाग्य से ही वह जीवित हुआ है। तेरे पुण्य से ही वह जीवित हुआ है। उसके बाद साहूकार की छोटी बेटी ने नगर में मुनादी करवा दी कि पूर्णिमा का पूरा व्रत करो। तब से यह दिन एक त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा और माता लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।

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