सफला एकादशी व्रत कथा | Saphala Ekadashi Vrat Katha PDF

नमस्कार दोस्तों, आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आप सभी के लिए सफला एकादशी व्रत कथा / Saphala Ekadashi Vrat Katha PDF  लेकर आए हैं। प्रत्येक वर्ष पौष महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अन्य नाम पौष कृष्ण एकादशी से भी जाना जाता है। यह एकादशी प्रत्येक वर्ष इसी महीने में आती है। इस एकादशी पर भी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने का प्रावधान है। यह एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि यदि किसी भी व्यक्ति के विवाह में बाधा आ रही है और वह इस एकादशी का व्रत रखता है तो उसके विवाह की संपूर्ण बाधाएं नष्ट हो जाती हैं। इस एकादशी पर व्रत करने से लंबे समय से फंसे हुए कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं। आप इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अवश्य ही व्रत रखकर Saphala Ekadashi Vrat Ki Katha को इस पोस्ट में आसानी से पढ़े। कथा की पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए पोस्ट के लास्ट में जाकर डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके पीडीएफ डाउनलोड करें।

सफला एकादशी व्रत कथा | Saphala Ekadashi Vrat Katha PDF – सारांश

चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक राजा राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। लुम्पक नाम का सबसे बड़ा पुत्र महापापी था। वह पापी सदैव पराई स्त्रियों और वेश्याओं के साथ संबंध बनाकर तथा अन्य बुरे काम करके अपने पिता का धन नष्ट करता था। वह सदैव देवताओं, ब्राह्मणों और वैष्णवों की निन्दा करता था। जब राजा को अपने ज्येष्ठ पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उसने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। फिर वह सोचने लगा कि कहां जाए? क्या करे?

अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया। वह दिन में जंगल में रहता और रात में अपने पिता के नगर में चोरी करता तथा लोगों को परेशान करता और मारता था। कुछ समय बाद पूरा नगर भयभीत हो गया। वह जंगल में रहने लगा और जानवरों को मारकर खाने लगा। नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ते थे, लेकिन राजा के भय से उसे छोड़ देते थे।

जंगल में एक बहुत पुराना और विशाल पीपल का वृक्ष था। लोग उसे भगवान की तरह पूजते थे। वह महापापी लुम्पक उस वृक्ष के नीचे रहता था। लोग इस वन को देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे। कुछ समय पश्चात पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के कारण सारी रात सो नहीं सका। उसके हाथ-पैर अकड़ गए। सूर्योदय होते-होते वह बेहोश हो गया। अगले दिन एकादशी को दोपहर के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसे होश आया। वह भोजन की तलाश में निकला, लड़खड़ाता हुआ गिरता-पड़ता। वह जानवरों को मारने में समर्थ नहीं था, इसलिए उसने वृक्षों के नीचे गिरे हुए फल उठाए और उसी पीपल के वृक्ष के नीचे आ गया। तब तक सूर्य अस्त हो चुका था।

उसने फल वृक्ष के नीचे रख दिए और कहा, “हे प्रभु! अब ये फल आपको अर्पित हैं। कृपया संतुष्ट हो जाइए।” उस रात वह शोक के कारण सो नहीं सका। उसके व्रत और जागरण से भगवान बहुत प्रसन्न हुए और उसके सभी पाप नष्ट हो गए। अगले दिन प्रातःकाल एक बहुत ही सुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं से सुसज्जित होकर उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसी समय आकाशवाणी हुई, “हे राजकुमार! श्री नारायण की कृपा से तुम्हारे पाप नष्ट हो गए हैं। अब तुम अपने पिता के पास जाओ और राज्य प्राप्त करो।” ऐसे वचन सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके अपने पिता के पास गया और कहा, “हे प्रभु, आपकी जय हो!” उसके पिता ने खुश हो कर उसे पूरा राज्य सौंप दिया और खुद वन को चले गए।

अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। उसकी पत्नी, पुत्र और पूरा परिवार भगवान नारायण का महान भक्त बन गया। जब वह वृद्ध हुआ, तो उसने भी राज्य का भार अपने पुत्र को सौंप दिया और तपस्या करने के लिए वन में चला गया और अपने जीवन के अंत में वैकुंठ को प्राप्त किया।

इसलिए, जो व्यक्ति इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है, वह अंत में मोक्ष प्राप्त करता है। जो लोग इसका व्रत नहीं करते हैं, वे पूंछ और सींग के बिना जानवरों की तरह होते हैं। इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने या सुनने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

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