नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप कमला एकादशी व्रत कथा / Kamla Ekadashi Vrat Katha PDF प्राप्त कर सकते हैं। पद्मपुराण में बताया गया है कि शुक्ल पक्ष में जो एकादशी पढ़ती है उसे कमला एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुरुषोत्तम महीने में पड़ने वाली एकादशी को पुरुषोत्तम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यदि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक या किसी अन्य प्रकार के संकट का सामना कर रहा है तो उसे यह व्रत अवश्य ही रखना चाहिए।
इस व्रत को रखने से जीवन में मनचाही वस्तु की प्राप्ति होती है और सभी सुखों की अनुभूति होती है। वह व्यक्ति जीवन के सब सुख भोग कर विष्णु लोग को चला जाता है। आप इस पोस्ट के द्वारा कमला एकादशी की कहानी / Kamla Ekadshi Ki Kahani को बिना किसी परेशानी के पढ़ सकते हैं। नीचे दिए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके व्रत कथा को पीडीएफ फॉर्मेट में डाउनलोड कर सकते हैं।
कमला एकादशी व्रत कथा | Kamla Ekadashi Vrat Katha PDF – सारांश
PDF Name | कमला एकादशी व्रत कथा | Kamla Ekadashi Vrat Katha PDF |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Source | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
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कमला एकादशी की व्रत कथा | Read Kamla Ekadashi Ki Vrat Katha
पहले कृतवीर्य नाम का एक राजा था। उस राजा की सौ पत्नियाँ थीं, उनमें से किसी के भी राज्य संभालने योग्य पुत्र नहीं था। तब राजा ने आदरपूर्वक पंडितों को बुलाकर पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराए, लेकिन सभी असफल रहे। जैसे दुःखी मनुष्य सुखों से थक जाता है, वैसे ही उसके पुत्र का राज्य भी दुःख से रहित हो गया। आख़िरकार यह जानकर कि उसने तपस्या से क्या हासिल किया है, वह तपस्या करने के लिए जंगल में चला गया। उनकी पत्नी (हरिचंद्रन की बेटी ब्रह्मा) भी अपने कपड़े छोड़कर अपने पति के साथ गंधमादन पहाड़ी पर चली गईं। उस स्थान पर दस हजार वर्ष तक तपस्या करने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। राजा के शरीर की केवल हड्डियाँ ही बची थीं। यह देखकर प्रमदा महासती ने अनुसूया से नम्रतापूर्वक पूछा- मेरे पति की तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये, परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र उत्पन्न हो सके। इसका कारण क्या है?
इस संबंध में अनसूया का कहना है कि आदिक माह में दो एकादशियां आती हैं जो छत्तीस महीने के बाद आती हैं। इसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘बर्मा’ है। भगवान तुम्हें व्रत से उठाकर अवश्य एक पुत्र देंगे।
तब अनसूयाजी ने व्रत की विधि बताई। रानी ने अनसूया की आज्ञा का पालन करते हुए एकादशी का व्रत किया और रात को जागरण किया। इससे विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा।
रानी ने कहा आप मेरे पति को यह वरदान दीजिये।
भगवान विष्णु ने प्रमथ की बातें सुनीं और कहा: ‘हे प्रमथ! मल मास (लाउंड) मेरा पसंदीदा है। विशेषकर एकादशी तिथि मुझे सबसे प्रिय है। इस एकादशी पर तुमने विधिपूर्वक व्रत और रात्रि जागरण किया है, इसलिये मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं’, विष्णु ने राजा से कहा: ‘हे राजेंद्र! अपनी पसंद का वरदान मांगो. क्योंकि तुम्हारी पत्नी ने मुझे प्रसन्न किया है।’
भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा ने कहा, ‘हे भगवन्! आप मुझे वह श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करें जिसकी आपके अतिरिक्त सभी देवता, दानव, मनुष्य आदि पूजा करें। इसके बाद दोनों अपने राज्य लौट आये। उनके स्थान पर कार्तवीरियार का जन्म हुआ। ईश्वर के अलावा वह सबसे अजेय है। उन्होंने रावण को परास्त किया। यह सब ‘पद्मिनी’ व्रत का ही फल है। इतना कहकर पुलस्ति वहां से चली गयी।
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