नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप आरती कुंजबिहारी की / Aarti Kunj Bihari Ki PDF प्राप्त कर सकते हैं। यह आरती भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित है इस आरती का निरंतर जाप करने से जीवन में शांति की अनुभूति होती है। और भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा बनी रहती है। इस आरती का भारत के साथ-साथ अन्य भी बहुत से देशों में प्रात काल में जाप किया जाता है। यह आरती बहुत ही लोकप्रिय है बहुत से घरों और मंदिरों में इस आरती को नियमित रूप से पढ़ा जाता है। यदि आप भगवान श्री कृष्ण जी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस आरती का जाप अवश्य ही करना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण को अन्य भी कई नामों से जाना जाता है जैसे – बांके बिहारी, कान्हा, गिरधर, कुंज बिहारी, इत्यादि। यदि आप इस आरती का निरंतर पढ़ेंगे तो निश्चित ही आपको आपके जीवन में शांति की अनुभूति होगी और भगवान श्री कृष्ण की कृपा छाया आप पर और आपके परिवार पर बनी रहेगी। इस पोस्ट के माध्यम से आप कृष्णा जी की आरती / Krishna ji ki Aarti को पढ़ सकते हैं। और नीचे दिए गए डाउनलोड पीडीएफ बटन पर क्लिक करके इसकी पीडीएफ प्राप्त कर सकते हैं।
आरती कुंजबिहारी की | Aarti Kunj Bihari Ki PDF – सारांश
PDF Name | आरती कुंजबिहारी की | Aarti Kunj Bihari Ki PDF |
Pages | 2 |
Language | Hindi |
Our Website | pdfinbox.com |
Category | Religion & Spirituality |
Source | pdfinbox.com |
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कृष्णा जी की आरती | Aarti Kunj Bihari Ki Lyrics in Hindi
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा बसी सिव सीस’
जटा के बीच, हरै अघ कीच।
चरन छवि श्रीबनवारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद; चांदनी चंद; कटत भव फंद;
टेर सुन दीन दुखारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की; श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके आप आरती कुंजबिहारी की / Aarti Kunj Bihari Ki PDF डाउनलोड कर सकते हैं। यदि आरती के लेखन में किसी भी प्रकार की त्रुटि है तो उसके लिए हम माफी चाहते हैं हमारा उद्देश्य किसी भी धार्मिक चीज के साथ छेड़खानी करना नहीं है।